टीचर्स डायरी: "अपने ससुर जी की विरासत को जिंदा रखने के लिए 115 बच्चों को अकेले पढ़ाती हूं"

Neetu Singh | Apr 13, 2023, 12:01 IST

जब 20 साल पहले नीतू सिंह दुल्हन बनकर यूपी के अलीगढ़ के भरथुआ गाँव में आईं तब से वो एक शिक्षिका बनकर बच्चों को पढ़ा रही हैं। अपनी इस कठिन यात्रा में उन्होंने 115 बच्चों को अकेले पढ़ाया तो कभी बच्चों के बैठने के लिए सीमेंट की बोरियों से चटाई बनाई, वह अपने ससुर की विरासत को जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं, जिन्होंने 1995 में भरथुआ गाँव में जयबल विद्यालय की स्थापना की थी, जहां इससे पहले कोई स्कूल नहीं था।

मेरे ससुर सुरेंद्र पाल सिंह ने 1995 में जय बाल विद्यालय की स्थापना की, क्योंकि भरथुआ गाँव में बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं था। उन्होंने अपनी पांच बेटियों के साथ ही गाँव के दूसरे बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए स्कूल की शुरूआत की थी।

जब स्कूल शुरू हुआ तो बच्चों से प्रति माह 30 रुपये से ज्यादा फीस नहीं ली जाती थी। इस विद्यालय में फीस मात्र नाम के लिए रखी गई है, जैसे पहले 30 रुपए थी लेकिन अब 100 रुपए कर दी गई है। फीस इसलिए रखा है ताकि बच्चों को ये न लगे कि वे फ्री में पढ़ रहे हैं। इस स्कूल में इस समय कक्षा एक से पांच तक के 115 बच्चे हैं और मैं अकेली शिक्षक हूं।

ननदों कि जब शादी हो गई और इतना पैसा नही था कि दूसरे अध्यापकों को रखें, तब मैंने फैसला किया कि मुझे ही पढ़ाना पड़ेगा। फिर मैंने खुद पढ़ाना शुरू किया और सन 2002 से यहां पढ़ाने लगी और आज तक सेवा में लगी हुई हूं।


हालत ये है कि बच्चों के लिए सीमेंट के कट्टों को सिलकर बैठने के लिए बनाना पड़ता है और बारिश व धूप से बचने के लिए सारी को बतौर पर्दा इस्तमाल करती हूं। हम अपने ससुर द्वारा स्थापित स्कूल को चलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बच्चों के बैठने के लिए उचित जगह नहीं है।

मेरा जन्म मथुरा के बांडी गाँव में हुआ था और मेरी प्राथमिक शिक्षा वहीं हुई थी। मेरे पिता की तबादले वाली नौकरी थी इसलिए हमारा अक्सर आना-जाना लगा रहता था, इसलिए मैंने भी आगरा में पढ़ाई की। जब मैं बहुत छोटी थी तब मेरी माँ की मौत हो गई और मेरे दादा-दादी ने मुझे पाला।

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मैंने बलभद्र इंटर कॉलेज में अपनी 10वीं की पढ़ाई पूरी की, जबकि मैंने 1994 में मुरादाबाद के राजकीय कन्या इंटर कॉलेज से 12वीं की पढ़ाई पूरी की। 1996 में मेरी शादी हुई और मैं अलीगढ़ के भरथुआ आ गई, और मैं यहीं हूं।

मेरे ससुर, जब उन्होंने स्कूल शुरू किया था, तब भी उनकी स्थिति ठीक नहीं थी। उनकी पांच बेटियों की शादी होनी थी। लेकिन उनके पास दृढ़ संकल्प और दृढ़ विश्वास का साहस था। इसीलिए मैं हार नहीं मानूंगी।

संघर्ष के बावजूद अच्छा लगता है जब हमारे छात्र अच्छा प्रदर्शन करते हैं। मेरे पूर्व छात्रों में से एक उत्तर प्रदेश पुलिस में शामिल हो गया। कुछ अन्य बैंकों में हैं। इन छात्रों की सफलता ने मुझे आगे बढ़ने की ऊर्जा दी है।

जैसा कि नीतू सिंह ने गाँव कनेक्शन के इंटर्न दानिश इकबाल को बताया।

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