जलवायु संकट की नई मार: ज़हरीले साँपों के बदलते हॉटस्पॉट और बढ़ती मौतें
Divendra Singh | Dec 11, 2025, 15:47 IST
भारत में सर्पदंश पहले ही हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करता है और अब जलवायु परिवर्तन इस संकट को और बढ़ाने वाला है। नए क्षेत्रों में हॉटस्पॉट उभरेंगे, पुराने खत्म होंगे, और बिग फोर ज़हरीले साँप उन इलाकों तक पहुँचेंगे जहाँ आज लोग उनसे अनजान हैं।
( Image credit : Gaon Connection Network, Gaon Connection )
दुनिया जिस रफ़्तार से गर्म हो रही है, उससे सिर्फ़ पहाड़ों की बर्फ नहीं पिघल रही, बल्कि जीव-जंतुओं के जीवन भी बदल रहे हैं। नदियों का रास्ता बदल रहा है, मौसम अनिश्चित हो रहा है, और जंगलों का स्वाभाविक संतुलन टूट रहा है। लेकिन इस बदलाव के बीच एक और कहानी है, जो बहुत धीमी आवाज़ में, लगभग ख़ामोशी से हमारे दरवाज़े तक पहुँच रही है, ज़हरीले साँपों की कहानी। जलवायु परिवर्तन उनके जीवन के हर पहलू को बदल रहा है और इसका असर सीधे इंसानी जीवन पर पड़ने वाला है।
भारत में किए गए एक बड़े अध्ययन ने पहली बार दिखाया है कि आने वाले दशकों में ज़हरीले साँपों के रहने की जगहों में भारी फेरबदल हो सकता है। यह बदलाव सिर्फ़ जंगलों में ही नहीं होगा, बल्कि गाँवों, खेतों, रास्तों, और उन क्षेत्रों तक भी पहुँचेगा जहाँ आज लोग साँपों को कम देखते हैं।
अध्ययन में भारत के 30 ज़हरीले साँपों के लगभग पाँच हजार रिकॉर्ड से 2931 पुख्ता लोकेशन चुनकर उनके वर्तमान और भविष्य के संभावित आवासों का मॉडल तैयार किया गया। यह डेटा सिर्फ़ वैज्ञानिक पत्रिकाओं से नहीं आया, बल्कि आम लोगों की साझा की हुई तस्वीरों, सोशल मीडिया, ऑनलाइन रिपॉज़िटरी और सिटीजन साइंस प्लेटफ़ॉर्मों से इकठ्ठा किया गया, यानी यह शोध जमीन की सच्चाई से जुड़ा हुआ है।
मॉडलिंग से पता चला कि अगर जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार इसी तरह जारी रही, तो वर्ष 2070 तक भारत के लगभग तीन प्रतिशत क्षेत्र में साँपों के वर्तमान हॉटस्पॉट या तो समाप्त हो जाएंगे या नई जगहों पर उभरेंगे। सबसे बड़ा झटका पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत को लग सकता है, वे क्षेत्र जो आज दुनिया की सबसे समृद्ध जैव विविधता वाले इलाकों में शामिल हैं।
सदियों से पहाड़ों, वर्षावनों और घाटियों में बसे कई साँप अब अपने पुराने घरों को छोड़ने पर मजबूर होंगे। कुछ ऊँचाई की ओर खिसकेंगे, लेकिन पहाड़ों की भी एक सीमा होती है। ऊपर जाते-जाते एक समय ऐसा आता है जब आगे रास्ता ही नहीं बचता। कई प्रजातियाँ “माउंटेन-टॉप स्क्वीज़” का शिकार होकर अस्तित्व के संकट में जा सकती हैं, एक ऐसी त्रासदी, जो दिखती नहीं, पर गहराई तक असर छोड़ती है।
इसके विपरीत, मध्य भारत में नए हॉटस्पॉट उभरने की संभावना है। ऐसे स्थान जहाँ पहले ज़हरीले साँपों की अधिकता नहीं थी। लेकिन तापमान बढ़ने, बारिश के पैटर्न बदलने और सूखे की अवधि लंबी होने के कारण अब वहाँ का मौसम कई साँपों के लिए अनुकूल बनता जा रहा है। यह बदलाव जितना वैज्ञानिक है, उतना ही सामाजिक भी। क्योंकि जिन क्षेत्रों में अब तक साँपों का खतरा कम था, वे भविष्य में अचानक एक नए डर, नए जोखिम और नई चुनौतियों का सामना करेंगे।
“बिग फोर” : चार साँप जो भारत में सर्पदंश के 95% मौत का हैं कारण
अध्ययन में “बिग फोर”: कॉमन करैत, कोबरा, रसेल वाइपर और सॉ-स्केल्ड वाइपर पर विशेष ध्यान दिया गया। ये वही चार प्रजातियाँ हैं जो भारत में सर्पदंश से होने वाली लगभग 95 प्रतिशत मौतों के लिए ज़िम्मेदार हैं। मॉडल बेहद स्पष्ट कहता है कि जहाँ जलवायु इन प्रजातियों के लिए अनुकूल होगी, वहां इंसानों के लिए सर्पदंश का खतरा भी बढ़ेगा। यानी जलवायु सिर्फ़ साँपों को नहीं, बल्कि मानव जीवन को भी नई दिशा में धकेलेगी।
उत्तर भारत में बढ़ेंगी सर्पदंश की घटनाएँ
उत्तर भारत, हिमालय की तराई, गंगा की घाटी, पूर्वोत्तर और मध्य भारत के बड़े हिस्सों में आने वाले दशकों में सर्पदंश जोखिम बढ़ेगा। ऐसे गाँव, जो आज साँपों से लगभग सुरक्षित हैं, भविष्य में नए हॉटस्पॉट बन सकते हैं। वहीं, दक्षिण भारत और गुजरात के कुछ हिस्सों में जोखिम कम होता दिखाई देता है, क्योंकि वहाँ का मौसम धीरे-धीरे इन प्रजातियों के अनुकूल नहीं रहेगा।
लेकिन यह कहानी सिर्फ़ प्रजातियों और भौगोलिक बदलाव की नहीं है। यह उन इंसानों की कहानी भी है जिनके जीवन में सर्पदंश एक गहरी, दर्दनाक वास्तविकता है। जुलाई 2020 में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारत में हर साल लगभग 2.8 मिलियन लोग साँप के काटने से प्रभावित होते हैं और बीस वर्षों में 1.2 मिलियन से अधिक मौतें दर्ज की गईं। इन मौतों में 94 प्रतिशत ग्रामीण भारत में होती हैं, जहाँ चिकित्सा सुविधाएँ सीमित हैं, सड़कें टूटी हुई हैं, और अस्पतालों तक पहुँचने में कई बार घंटों लग जाते हैं।
इन राज्यों में होती हैं सबसे अधिक मौतें
सर्पदंश से मरने वाले 70 प्रतिशत लोग सिर्फ़ आठ राज्यों से आते हैं। बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश (जिसमें तेलंगाना भी शामिल), राजस्थान और गुजरात। उत्तर प्रदेश अकेले में हर साल लगभग 8,700 लोग इस कारण जान गंवाते हैं। ये आँकड़े सिर्फ़ नंबर नहीं हैं, ये हैं टूटे परिवारों की कहानियाँ, उनके सपनों के बिखरने की कहानी। एक किसान जो रात में खेत लौटते समय दंश का शिकार होता है, उसके लिए अस्पताल तक पहुँचना अक्सर समय के खिलाफ़ अंतिम दौड़ होता है। और यदि वह बच भी जाए, तो महीनों तक काम करने की क्षमता खो देता है, परिवार पर कर्ज, असुरक्षा और गरीबी की नई मार पड़ती है।
विडंबना यह है कि भारत दुनिया के सबसे बड़े एंटी-वेनम उत्पादकों में से एक है, फिर भी ग्रामीण अस्पतालों में एंटी-वेनम की भारी कमी रहती है। वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के विशेषज्ञ जॉन्स लुइस बताते हैं कि भारत में एंटी-वेनम सिर्फ चार प्रजातियों के जहर पर आधारित होता है, जबकि भारत में 300 से अधिक प्रजातियाँ हैं, जिनमें से 15 ज़हरीली हैं। और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि एंटी-वेनम बनाने के लिए जहर केवल तमिलनाडु के एक ही क्षेत्र से इकट्ठा किया जाता है। इतने विशाल देश में एक ही प्रकार के जहर पर आधारित एंटी-वेनम हर क्षेत्र में समान प्रभावशीलता नहीं दिखा सकता।
जलवायु परिवर्तन के इस दौर में समस्या और गंभीर हो सकती है। जैसे-जैसे साँप नए क्षेत्रों में फैलेंगे, वैसे-वैसे उन क्षेत्रों में एंटी-वेनम की आवश्यकता भी बढ़ेगी, जहाँ आज इसकी कल्पना भी नहीं होती।
तो सवाल उठता है, रास्ता क्या है?
डर इस समस्या का समाधान नहीं। समाधान है, समय रहते तैयारी, जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान, ग्रामीण अस्पतालों में एंटी-वेनम की सतत उपलब्धता, प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मियों का प्रशिक्षण, और सबसे बढ़कर लोगों में जागरूकता। सर्पदंश अब सिर्फ़ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है, यह जलवायु परिवर्तन के कारण तेज़ी से बढ़ता सामाजिक संकट है।
अध्ययन हमें बताता है कि प्रकृति और मानव जीवन एक-दूसरे से अलग नहीं। जब मौसम बदलता है, जब धरती गर्म होती है, तो उसकी मार हर जीव, चाहे वह साँप हो या इंसान झेलता है। यह कहानी हमें चेतावनी देती है, पर उम्मीद भी देती है कि यदि हम समय रहते एकजुट होकर कदम उठाएँ, तो हम इस चुनौती का सामना कर सकते हैं।
भारत में किए गए एक बड़े अध्ययन ने पहली बार दिखाया है कि आने वाले दशकों में ज़हरीले साँपों के रहने की जगहों में भारी फेरबदल हो सकता है। यह बदलाव सिर्फ़ जंगलों में ही नहीं होगा, बल्कि गाँवों, खेतों, रास्तों, और उन क्षेत्रों तक भी पहुँचेगा जहाँ आज लोग साँपों को कम देखते हैं।
( Image credit : Gaon Connection Network, Gaon Connection )
अध्ययन में भारत के 30 ज़हरीले साँपों के लगभग पाँच हजार रिकॉर्ड से 2931 पुख्ता लोकेशन चुनकर उनके वर्तमान और भविष्य के संभावित आवासों का मॉडल तैयार किया गया। यह डेटा सिर्फ़ वैज्ञानिक पत्रिकाओं से नहीं आया, बल्कि आम लोगों की साझा की हुई तस्वीरों, सोशल मीडिया, ऑनलाइन रिपॉज़िटरी और सिटीजन साइंस प्लेटफ़ॉर्मों से इकठ्ठा किया गया, यानी यह शोध जमीन की सच्चाई से जुड़ा हुआ है।
मॉडलिंग से पता चला कि अगर जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार इसी तरह जारी रही, तो वर्ष 2070 तक भारत के लगभग तीन प्रतिशत क्षेत्र में साँपों के वर्तमान हॉटस्पॉट या तो समाप्त हो जाएंगे या नई जगहों पर उभरेंगे। सबसे बड़ा झटका पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत को लग सकता है, वे क्षेत्र जो आज दुनिया की सबसे समृद्ध जैव विविधता वाले इलाकों में शामिल हैं।
सदियों से पहाड़ों, वर्षावनों और घाटियों में बसे कई साँप अब अपने पुराने घरों को छोड़ने पर मजबूर होंगे। कुछ ऊँचाई की ओर खिसकेंगे, लेकिन पहाड़ों की भी एक सीमा होती है। ऊपर जाते-जाते एक समय ऐसा आता है जब आगे रास्ता ही नहीं बचता। कई प्रजातियाँ “माउंटेन-टॉप स्क्वीज़” का शिकार होकर अस्तित्व के संकट में जा सकती हैं, एक ऐसी त्रासदी, जो दिखती नहीं, पर गहराई तक असर छोड़ती है।
इसके विपरीत, मध्य भारत में नए हॉटस्पॉट उभरने की संभावना है। ऐसे स्थान जहाँ पहले ज़हरीले साँपों की अधिकता नहीं थी। लेकिन तापमान बढ़ने, बारिश के पैटर्न बदलने और सूखे की अवधि लंबी होने के कारण अब वहाँ का मौसम कई साँपों के लिए अनुकूल बनता जा रहा है। यह बदलाव जितना वैज्ञानिक है, उतना ही सामाजिक भी। क्योंकि जिन क्षेत्रों में अब तक साँपों का खतरा कम था, वे भविष्य में अचानक एक नए डर, नए जोखिम और नई चुनौतियों का सामना करेंगे।
“बिग फोर” : चार साँप जो भारत में सर्पदंश के 95% मौत का हैं कारण
अध्ययन में “बिग फोर”: कॉमन करैत, कोबरा, रसेल वाइपर और सॉ-स्केल्ड वाइपर पर विशेष ध्यान दिया गया। ये वही चार प्रजातियाँ हैं जो भारत में सर्पदंश से होने वाली लगभग 95 प्रतिशत मौतों के लिए ज़िम्मेदार हैं। मॉडल बेहद स्पष्ट कहता है कि जहाँ जलवायु इन प्रजातियों के लिए अनुकूल होगी, वहां इंसानों के लिए सर्पदंश का खतरा भी बढ़ेगा। यानी जलवायु सिर्फ़ साँपों को नहीं, बल्कि मानव जीवन को भी नई दिशा में धकेलेगी।
( Image credit : Gaon Connection Network, Gaon Connection )
उत्तर भारत में बढ़ेंगी सर्पदंश की घटनाएँ
उत्तर भारत, हिमालय की तराई, गंगा की घाटी, पूर्वोत्तर और मध्य भारत के बड़े हिस्सों में आने वाले दशकों में सर्पदंश जोखिम बढ़ेगा। ऐसे गाँव, जो आज साँपों से लगभग सुरक्षित हैं, भविष्य में नए हॉटस्पॉट बन सकते हैं। वहीं, दक्षिण भारत और गुजरात के कुछ हिस्सों में जोखिम कम होता दिखाई देता है, क्योंकि वहाँ का मौसम धीरे-धीरे इन प्रजातियों के अनुकूल नहीं रहेगा।
लेकिन यह कहानी सिर्फ़ प्रजातियों और भौगोलिक बदलाव की नहीं है। यह उन इंसानों की कहानी भी है जिनके जीवन में सर्पदंश एक गहरी, दर्दनाक वास्तविकता है। जुलाई 2020 में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारत में हर साल लगभग 2.8 मिलियन लोग साँप के काटने से प्रभावित होते हैं और बीस वर्षों में 1.2 मिलियन से अधिक मौतें दर्ज की गईं। इन मौतों में 94 प्रतिशत ग्रामीण भारत में होती हैं, जहाँ चिकित्सा सुविधाएँ सीमित हैं, सड़कें टूटी हुई हैं, और अस्पतालों तक पहुँचने में कई बार घंटों लग जाते हैं।
इन राज्यों में होती हैं सबसे अधिक मौतें
सर्पदंश से मरने वाले 70 प्रतिशत लोग सिर्फ़ आठ राज्यों से आते हैं। बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश (जिसमें तेलंगाना भी शामिल), राजस्थान और गुजरात। उत्तर प्रदेश अकेले में हर साल लगभग 8,700 लोग इस कारण जान गंवाते हैं। ये आँकड़े सिर्फ़ नंबर नहीं हैं, ये हैं टूटे परिवारों की कहानियाँ, उनके सपनों के बिखरने की कहानी। एक किसान जो रात में खेत लौटते समय दंश का शिकार होता है, उसके लिए अस्पताल तक पहुँचना अक्सर समय के खिलाफ़ अंतिम दौड़ होता है। और यदि वह बच भी जाए, तो महीनों तक काम करने की क्षमता खो देता है, परिवार पर कर्ज, असुरक्षा और गरीबी की नई मार पड़ती है।
( Image credit : Gaon Connection Network, Gaon Connection )
विडंबना यह है कि भारत दुनिया के सबसे बड़े एंटी-वेनम उत्पादकों में से एक है, फिर भी ग्रामीण अस्पतालों में एंटी-वेनम की भारी कमी रहती है। वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के विशेषज्ञ जॉन्स लुइस बताते हैं कि भारत में एंटी-वेनम सिर्फ चार प्रजातियों के जहर पर आधारित होता है, जबकि भारत में 300 से अधिक प्रजातियाँ हैं, जिनमें से 15 ज़हरीली हैं। और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि एंटी-वेनम बनाने के लिए जहर केवल तमिलनाडु के एक ही क्षेत्र से इकट्ठा किया जाता है। इतने विशाल देश में एक ही प्रकार के जहर पर आधारित एंटी-वेनम हर क्षेत्र में समान प्रभावशीलता नहीं दिखा सकता।
जलवायु परिवर्तन के इस दौर में समस्या और गंभीर हो सकती है। जैसे-जैसे साँप नए क्षेत्रों में फैलेंगे, वैसे-वैसे उन क्षेत्रों में एंटी-वेनम की आवश्यकता भी बढ़ेगी, जहाँ आज इसकी कल्पना भी नहीं होती।
तो सवाल उठता है, रास्ता क्या है?
डर इस समस्या का समाधान नहीं। समाधान है, समय रहते तैयारी, जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान, ग्रामीण अस्पतालों में एंटी-वेनम की सतत उपलब्धता, प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मियों का प्रशिक्षण, और सबसे बढ़कर लोगों में जागरूकता। सर्पदंश अब सिर्फ़ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है, यह जलवायु परिवर्तन के कारण तेज़ी से बढ़ता सामाजिक संकट है।
अध्ययन हमें बताता है कि प्रकृति और मानव जीवन एक-दूसरे से अलग नहीं। जब मौसम बदलता है, जब धरती गर्म होती है, तो उसकी मार हर जीव, चाहे वह साँप हो या इंसान झेलता है। यह कहानी हमें चेतावनी देती है, पर उम्मीद भी देती है कि यदि हम समय रहते एकजुट होकर कदम उठाएँ, तो हम इस चुनौती का सामना कर सकते हैं।