मध्य हिमालय में संकट का सायरन: आने वाले दशकों में 100 साल वाली बाढ़ हर 5 साल में लौटेगी
Gaon Connection | Dec 12, 2025, 13:25 IST
मध्य हिमालय में बारिश का पैटर्न बदल चुका है, कुछ घंटों में महीनों जितनी बारिश, और नदियाँ पहले से अधिक उफनती हुई। नई वैज्ञानिक स्टडी चेतावनी देती है कि आने वाले दशकों में बाढ़ सिर्फ बढ़ेगी ही नहीं, बल्कि पहाड़ों की ज़िंदगी की दिशा ही बदल देगी।
( Image credit : Gaon Connection Creatives, Gaon Connection )
नेपाल और भारत के बीच फैली मध्य हिमालय की घाटियाँ दुनिया के नक्शे पर जितनी खूबसूरत दिखती हैं, उतनी ही आज असुरक्षित भी हो चुकी हैं। बरसात के मौसम में नदी किनारे बसे गांवों के लोग हर रात इसी डर में सोते हैं कि कहीं अचानक पानी घर की देहरी तक न आ जाए। बुज़ुर्ग अक्सर कहते हैं, “पहाड़ अब शांत नहीं रहा।” यह सिर्फ एक भावनात्मक वाक्य नहीं, बल्कि बदलते जलवायु-संकट की वास्तविकता है।
साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित नई वैज्ञानिक स्टडी इस डर की पुष्टि करती है। शोध बताता है कि कर्णाली नदी और उससे जुड़े पहाड़ी कैचमेंट अब प्राकृतिक चक्र पर नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के दबाव पर चल रहे हैं।
2024 में आई बाढ़ ने नेपाल की GDP का लगभग 1% बहा दिया, 236 मौतें और 8,400 परिवार बेघर। यह आंकड़ा सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि आने वाले भविष्य की झलक है।
नेपाल की राजधानी काठमांडू से 76 किलोमीटर दूर सिंधुपालचोक जिले के मेलम्ची गाँव में जून, 2021 बाढ़ और तबाही लेकर आया। तब से आज तक यह गाँव इससे उबरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उबर नहीं पाया है।
बाढ़ में अपना घर खोने वाले मेलम्ची गाँव के रहने वाले आज भी अभी तक दर्द से नहीं उबर पाए हैं। प्रेम श्रेष्ठ बताते हैं, "हमारी आँखों के सामने सब कुछ बह गया; मेरे घर के साथ सामने वाला होटल भी ताश के पत्तों की तरह बह गया, सरकार ने घर बनाने और अन्य नुकसान की भरपाई के लिए रिलीफ फंड के तहत पाँच लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की, लेकिन आज तक सिर्फ 50 हज़ार रुपए ही मिले, इसके अलावा किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिली।"
"हम चाहकर भी अपना घर दोबारा खड़ा नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हमारे पास कोई रोज़गार या काम नहीं है; पैसे के अभाव में घर बनाने की सोचना बहुत मुश्किल काम है, सरकार से किसी तरह की मदद मिलेगी, ऐसी कोई उम्मीद नहीं है। "प्रेम श्रेष्ठ ने उदासी में कहा।
बारिश ही अब सबसे बड़ा खतरा
कई दशक तक यह माना जाता था कि हिमनद (ग्लेशियर) और बर्फ पिघलने का पानी ही पहाड़ों में बाढ़ बढ़ाता है। लेकिन इस रिसर्च का सबसे चौंकाने वाला निष्कर्ष है कि भविष्य की बाढ़ों में 90% से अधिक पानी केवल बारिश-रनऑफ से आएगा।
इसका तेज़, लगातार और रिकॉर्ड-तोड़ बारिश, वही अब बाढ़ का असली कारण बन रही है।
पहाड़ों में जहां पहले हफ्तों तक धीमी-धीमी बारिश होती थी, आज वही बारिश कुछ घंटों में महीनों जितनी गिर जाती है। पहाड़ी ढलानें कमजोर हैं, पेड़ों की संख्या कम हो रही है, तापमान बढ़ रहा है, ये सभी बदलाव मिलकर बारिश को कहीं अधिक खतरनाक बना चुके हैं।
आने वाली बाढ़ें कितनी बड़ी होंगी?
शोधकर्ताओं ने 12 वैश्विक जलवायु मॉडलों का अध्ययन किया। नतीजे डराने वाले हैं:
2060–2099 के बीच 100-year flood (1% संभावना वाली बाढ़) 40% तक बढ़ेगी, यदि ग्रीनहाउस गैसें मध्यम स्तर पर भी रहीं है। उच्च उत्सर्जन होने पर यह बढ़ोतरी 79% तक जा सकती है। जो बाढ़ पहले 100 साल में एक बार आती थी, वह अब हर 3–11 साल में लौट आएगी। इसका मतलब है कि कर्णाली के किनारे बसे दैलेख, सुर्खेत, चिसापानी जैसे क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए आने वाले दशक बेहद कठिन होंगे।
पहाड़ों में रहने वालों की ज़िंदगी कैसे बदलेगी?
बाढ़ यहाँ सिर्फ पानी भरने का नाम नहीं है। यह खेतों का कटना, फसलों का डूबना, बच्चों का स्कूल छूट जाना, मवेशियों की मौत, और महीनों तक अस्थायी टेंटों में रहने की मजबूरी है।
कई गाँवों में परिवार हर मानसून यही सोचकर चिंतित रहते हैं कि इस बार पानी कितनी दूर तक आएगा। किसी के खेत की मेड़ टूट जाती है, किसी के धान का पूरा खेत बह जाता है और जब बाढ़ उतरती है, तब मिट्टी की मोटी परतें खेतों को बंजर बना देती हैं। यह सिर्फ प्रकृति नहीं, बल्कि एक लगातार बदलते जलवायु संकट का परिणाम है।
वैज्ञानिक क्या कहते हैं?
स्टडी बताती है कि भारी बारिश के इवेंट बढ़ेंगे, बारिश से रनऑफ बढ़ेगा, यह रनऑफ पहाड़ी नदियों को पहले से अधिक उफनाएगा
यह निष्कर्ष इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भविष्य के अनुमान में जल विज्ञान (hydrological modelling) की अनिश्चितता अभी भी बहुत अधिक है। पहाड़ों में 4,000 मीटर से ऊपर बहुत कम मौसम स्टेशन हैं, जिससे सही डेटा मिलना मुश्किल होता है।
फिर भी, सभी मॉडल एक ही दिशा दिखाते हैं, जितनी अधिक ग्रीनहाउस गैसें, उतनी अधिक बारिश और उतनी अधिक बाढ़।
ज़मीन का उपयोग बदल रहा है, खतरा और बढ़ेगा
इस अध्ययन ने भूमि उपयोग (land use) परिवर्तन को शामिल नहीं किया है, जबकि यह खुद बाढ़ के खतरे को काफी बदल देता है।
नेपाल और उत्तराखंड में दो बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं: जलवायु परिवर्तन के कारण ऊँचाई पर पेड़-पौधों की प्रजातियाँ बदल रही हैं, कृषि सीढ़ियों का छोड़ना/फैलना इससे runoff पर गहरा असर पड़ता है, इन दोनों कारकों के कारण भविष्य की बाढ़ें और भी गंभीर हो सकती हैं।
बाढ़ें बढ़ती ही क्यों रहेंगी?
शोध यह स्पष्ट करता है कि बाढ़ें समय के साथ और उत्सर्जन के बढ़ने के साथ तेज़ होंगी, यह रुझान peak emissions के बाद भी कई दशक तक जारी रहेगा, इस सदी के अंत तक बाढ़ का खतरा आज की तुलना में कहीं अधिक होगा, यानि यह संकट अभी बस शुरू हुआ है।
अब क्या करना होगा?
कर्णाली नदी पहले ही “flood intensification phase” में प्रवेश कर चुकी है। इसलिए पुराने बाढ़ सुरक्षा ढांचे पर्याप्त नहीं, बांध, तटबंदी, चेक-डैम इनका डिज़ाइन नए खतरे के मुताबिक होना चाहिए, शहरों और कस्बों में अभी से बाढ़ रोकथाम के लिए जगहें तय करनी होंगी। बेहतर चेतावनी प्रणाली ज़रूरी, डिज़ास्टर मैनेजमेंट और evacuation योजना मजबूत बनानी होगी। भविष्य की बाढ़ें अब सिर्फ वैज्ञानिक रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनौती होंगी। यह शोध सिर्फ एक अध्ययन नहीं, बल्कि एक चेतावनी है।
मध्य हिमालय के लोग पहले से अधिक संवेदनशील हो चुके हैं। बारिश का पैटर्न टूट चुका है, और बाढ़ अब सिर्फ प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में पहाड़ों की ज़िंदगी, चोटियों से लेकर घाटियों तक पूरी तरह बदल सकती है।
ये भी पढ़ें: बिहार से सटे नेपाल के इस गाँव में क्यों खाने तक के पड़े लाले
साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित नई वैज्ञानिक स्टडी इस डर की पुष्टि करती है। शोध बताता है कि कर्णाली नदी और उससे जुड़े पहाड़ी कैचमेंट अब प्राकृतिक चक्र पर नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के दबाव पर चल रहे हैं।
2024 में आई बाढ़ ने नेपाल की GDP का लगभग 1% बहा दिया, 236 मौतें और 8,400 परिवार बेघर। यह आंकड़ा सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि आने वाले भविष्य की झलक है।
नेपाल की राजधानी काठमांडू से 76 किलोमीटर दूर सिंधुपालचोक जिले के मेलम्ची गाँव में जून, 2021 बाढ़ और तबाही लेकर आया। तब से आज तक यह गाँव इससे उबरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उबर नहीं पाया है।
बाढ़ में अपना घर खोने वाले मेलम्ची गाँव के रहने वाले आज भी अभी तक दर्द से नहीं उबर पाए हैं। प्रेम श्रेष्ठ बताते हैं, "हमारी आँखों के सामने सब कुछ बह गया; मेरे घर के साथ सामने वाला होटल भी ताश के पत्तों की तरह बह गया, सरकार ने घर बनाने और अन्य नुकसान की भरपाई के लिए रिलीफ फंड के तहत पाँच लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की, लेकिन आज तक सिर्फ 50 हज़ार रुपए ही मिले, इसके अलावा किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिली।"
"हम चाहकर भी अपना घर दोबारा खड़ा नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हमारे पास कोई रोज़गार या काम नहीं है; पैसे के अभाव में घर बनाने की सोचना बहुत मुश्किल काम है, सरकार से किसी तरह की मदद मिलेगी, ऐसी कोई उम्मीद नहीं है। "प्रेम श्रेष्ठ ने उदासी में कहा।
बारिश ही अब सबसे बड़ा खतरा
कई दशक तक यह माना जाता था कि हिमनद (ग्लेशियर) और बर्फ पिघलने का पानी ही पहाड़ों में बाढ़ बढ़ाता है। लेकिन इस रिसर्च का सबसे चौंकाने वाला निष्कर्ष है कि भविष्य की बाढ़ों में 90% से अधिक पानी केवल बारिश-रनऑफ से आएगा।
( Image credit : Gaon Connection Creatives, Gaon Connection )
इसका तेज़, लगातार और रिकॉर्ड-तोड़ बारिश, वही अब बाढ़ का असली कारण बन रही है।
पहाड़ों में जहां पहले हफ्तों तक धीमी-धीमी बारिश होती थी, आज वही बारिश कुछ घंटों में महीनों जितनी गिर जाती है। पहाड़ी ढलानें कमजोर हैं, पेड़ों की संख्या कम हो रही है, तापमान बढ़ रहा है, ये सभी बदलाव मिलकर बारिश को कहीं अधिक खतरनाक बना चुके हैं।
आने वाली बाढ़ें कितनी बड़ी होंगी?
शोधकर्ताओं ने 12 वैश्विक जलवायु मॉडलों का अध्ययन किया। नतीजे डराने वाले हैं:
2060–2099 के बीच 100-year flood (1% संभावना वाली बाढ़) 40% तक बढ़ेगी, यदि ग्रीनहाउस गैसें मध्यम स्तर पर भी रहीं है। उच्च उत्सर्जन होने पर यह बढ़ोतरी 79% तक जा सकती है। जो बाढ़ पहले 100 साल में एक बार आती थी, वह अब हर 3–11 साल में लौट आएगी। इसका मतलब है कि कर्णाली के किनारे बसे दैलेख, सुर्खेत, चिसापानी जैसे क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए आने वाले दशक बेहद कठिन होंगे।
पहाड़ों में रहने वालों की ज़िंदगी कैसे बदलेगी?
बाढ़ यहाँ सिर्फ पानी भरने का नाम नहीं है। यह खेतों का कटना, फसलों का डूबना, बच्चों का स्कूल छूट जाना, मवेशियों की मौत, और महीनों तक अस्थायी टेंटों में रहने की मजबूरी है।
( Image credit : Gaon Connection Network, Gaon Connection )
कई गाँवों में परिवार हर मानसून यही सोचकर चिंतित रहते हैं कि इस बार पानी कितनी दूर तक आएगा। किसी के खेत की मेड़ टूट जाती है, किसी के धान का पूरा खेत बह जाता है और जब बाढ़ उतरती है, तब मिट्टी की मोटी परतें खेतों को बंजर बना देती हैं। यह सिर्फ प्रकृति नहीं, बल्कि एक लगातार बदलते जलवायु संकट का परिणाम है।
वैज्ञानिक क्या कहते हैं?
स्टडी बताती है कि भारी बारिश के इवेंट बढ़ेंगे, बारिश से रनऑफ बढ़ेगा, यह रनऑफ पहाड़ी नदियों को पहले से अधिक उफनाएगा
यह निष्कर्ष इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भविष्य के अनुमान में जल विज्ञान (hydrological modelling) की अनिश्चितता अभी भी बहुत अधिक है। पहाड़ों में 4,000 मीटर से ऊपर बहुत कम मौसम स्टेशन हैं, जिससे सही डेटा मिलना मुश्किल होता है।
फिर भी, सभी मॉडल एक ही दिशा दिखाते हैं, जितनी अधिक ग्रीनहाउस गैसें, उतनी अधिक बारिश और उतनी अधिक बाढ़।
ज़मीन का उपयोग बदल रहा है, खतरा और बढ़ेगा
इस अध्ययन ने भूमि उपयोग (land use) परिवर्तन को शामिल नहीं किया है, जबकि यह खुद बाढ़ के खतरे को काफी बदल देता है।
नेपाल और उत्तराखंड में दो बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं: जलवायु परिवर्तन के कारण ऊँचाई पर पेड़-पौधों की प्रजातियाँ बदल रही हैं, कृषि सीढ़ियों का छोड़ना/फैलना इससे runoff पर गहरा असर पड़ता है, इन दोनों कारकों के कारण भविष्य की बाढ़ें और भी गंभीर हो सकती हैं।
बाढ़ें बढ़ती ही क्यों रहेंगी?
शोध यह स्पष्ट करता है कि बाढ़ें समय के साथ और उत्सर्जन के बढ़ने के साथ तेज़ होंगी, यह रुझान peak emissions के बाद भी कई दशक तक जारी रहेगा, इस सदी के अंत तक बाढ़ का खतरा आज की तुलना में कहीं अधिक होगा, यानि यह संकट अभी बस शुरू हुआ है।
अब क्या करना होगा?
कर्णाली नदी पहले ही “flood intensification phase” में प्रवेश कर चुकी है। इसलिए पुराने बाढ़ सुरक्षा ढांचे पर्याप्त नहीं, बांध, तटबंदी, चेक-डैम इनका डिज़ाइन नए खतरे के मुताबिक होना चाहिए, शहरों और कस्बों में अभी से बाढ़ रोकथाम के लिए जगहें तय करनी होंगी। बेहतर चेतावनी प्रणाली ज़रूरी, डिज़ास्टर मैनेजमेंट और evacuation योजना मजबूत बनानी होगी। भविष्य की बाढ़ें अब सिर्फ वैज्ञानिक रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनौती होंगी। यह शोध सिर्फ एक अध्ययन नहीं, बल्कि एक चेतावनी है।
मध्य हिमालय के लोग पहले से अधिक संवेदनशील हो चुके हैं। बारिश का पैटर्न टूट चुका है, और बाढ़ अब सिर्फ प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में पहाड़ों की ज़िंदगी, चोटियों से लेकर घाटियों तक पूरी तरह बदल सकती है।
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