हिम तेंदुए अब संख्या में कितने बचे? जानिए किस राज्य में हैं सबसे ज़्यादा
Gaon Connection | Dec 12, 2025, 11:09 IST
भारत ने पहली बार हिम तेंदुओं की देशव्यापी वैज्ञानिक गणना पूरी की है, जिसमें कुल 718 तेंदुओं के होने की पुष्टि हुई। यह सर्वे हिमालयी इकोसिस्टम की सुरक्षा और इस दुर्लभ प्रजाति के संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
( Image credit : Gaon Connection Network, Gaon Connection )
भारत के सबसे रहस्यमय और खूबसूरत जानवर, हिम तेंदुए के बारे में एक बड़ी और ऐतिहासिक जानकारी सामने आई है। लगभग चार साल चली लंबी मेहनत के बाद सरकार ने देशभर में हिम तेंदुओं की पहली व्यवस्थित गणना पूरी कर ली है।
‘हिम तेंदुआ जनसंख्या आकलन - इंडिया’ (एसपीएआई) नाम के इस बड़े सर्वे ने 2019 से 2023 के बीच भारत के ऊपरी हिमालयी इलाकों में फैले करीब 1,20,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया। यह क्षेत्र देश में हिम तेंदुए के संभावित आवास का 70% से अधिक हिस्सा है। लंबे इंतज़ार के बाद जारी हुई यह रिपोर्ट 30 जनवरी 2024 को सामने आई और इसमें पहली बार देश में हिम तेंदुओं की अनुमानित संख्या आधिकारिक रूप से बताई गई - 718।
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक हिम तेंदुए लद्दाख में पाए गए, जहां इनकी संख्या 477 आंकी गई। इसके बाद उत्तराखंड में 124, हिमाचल प्रदेश में 51, अरुणाचल प्रदेश में 36, सिक्किम में 21, और जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 9 की उपस्थिति दर्ज की गई। यह आंकड़ा न केवल हिम तेंदुए की वास्तविक स्थिति दिखाता है, बल्कि यह भी बताता है कि किन क्षेत्रों में इनके संरक्षण की सबसे अधिक ज़रूरत है।
एसपीएआई को देश का अब तक का सबसे बड़ा, कठिन और वैज्ञानिक रूप से कठोर वन्यजीव आकलन माना जा रहा है। इस सर्वे की खासियत यह है कि इसे दो-चरणीय मॉडल पर तैयार किया गया। पहले चरण में टीमों ने हिम तेंदुए के संभावित आवासों की पहचान की, जबकि दूसरे चरण में कैमरा ट्रैप लगाकर उनकी वास्तविक उपस्थिति का पता लगाया गया। सर्वेक्षण टीमों ने ऊबड़-खाबड़, बर्फीले और बेहद कठिन इलाकों में 13,450 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा की। इसके अलावा 1,971 स्थानों पर कैमरे लगाए गए, जिनसे लगभग 1,80,000 कैमरा-ट्रैप नाइट्स की निगरानी के दौरान 241 अलग-अलग हिम तेंदुओं की तस्वीरें कैप्चर हुईं।
इस विशाल अभ्यास का नेतृत्व देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) ने किया, जिसमें सभी रेंज राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के वन विभागों के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर काम करने वाले कई गैर-सरकारी संगठन भी जुड़े रहे। इसका दूसरा चरण एसपीएआई 2.0 केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने वन्यजीव सप्ताह 2025 में शुरू किया है, जिसका लक्ष्य हिम तेंदुए और उसके आवास की निगरानी को और अधिक नियमित व मजबूत बनाना है।
हिम तेंदुआ भारत सरकार के प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम (Species Recovery Programme) के तहत चिन्हित 24 प्रजातियों में शामिल है। इस कार्यक्रम के ज़रिए केंद्र राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता देता है, ताकि लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण वैज्ञानिक तरीकों से किया जा सके। एसपीएआई के निष्कर्ष मंत्रालय की भविष्य की संरक्षण रणनीतियों की रीढ़ बनेंगे, जिनमें उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जनसंख्या निगरानी, बेहतर वैज्ञानिक आकलन और स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी जैसे पहलुओं पर जोर रहेगा।
केंद्रीय मंत्रालय ने राष्ट्रीय हिम तेंदुआ इकोसिस्टम संरक्षण प्राथमिकताएं (NSLEP) के तहत हिम तेंदुए के संरक्षण को मिशन मोड में आगे बढ़ाया है। इसी दिशा में ‘सिक्योर हिमालय’ कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य हिमालय के नाज़ुक उच्च-ऊंचाई वाले इकोसिस्टम को सुरक्षित रखना, हिम तेंदुए जैसे दुर्लभ वन्यजीवों की सुरक्षा करना और इन क्षेत्रों पर निर्भर समुदायों की आजीविका को मज़बूत करना है।
भारत में हिम तेंदुआ सबसे उच्च सुरक्षा श्रेणी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध है। इसका मतलब है कि इसे कानूनी सुरक्षा का सर्वोच्च दर्जा प्राप्त है। इसके प्राकृतिक आवासों को बचाने के लिए सरकार दीर्घकालिक और विज्ञान-आधारित प्रबंधन रणनीतियों पर काम कर रही है। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश में घोषित शीत रेगिस्तान जीवमंडल अभ्यारण्य को यूनेस्को के वर्ल्ड बायोस्फियर रिजर्व नेटवर्क में शामिल किया गया है। इसी तरह नंदा देवी और कंचनजंगा जैसे संरक्षित क्षेत्र भी हिम तेंदुए के प्रमुख आवासों को सुरक्षित रखते हैं। कुल मिलाकर लगभग 7,770 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को संरक्षित आवास के रूप में मजबूत संरक्षण मिला है।
लंबी अवधि में लक्ष्य न केवल संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार करना है, बल्कि जमीन-स्तर पर समुदायों को शामिल करते हुए आवासों का बेहतर प्रबंधन करना है। वैज्ञानिक निगरानी, बहु-एजेंसी समन्वय, चराई दबाव और आवास क्षरण को कम करना जैसे प्रयास इस मिशन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने यह पूरी जानकारी साझा की। यह आकलन भारत में हिम तेंदुए के संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है, जो आने वाले वर्षों में इस दुर्लभ और सुंदर प्रजाति को बचाने के लिए मार्गदर्शक साबित होगा।
‘हिम तेंदुआ जनसंख्या आकलन - इंडिया’ (एसपीएआई) नाम के इस बड़े सर्वे ने 2019 से 2023 के बीच भारत के ऊपरी हिमालयी इलाकों में फैले करीब 1,20,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया। यह क्षेत्र देश में हिम तेंदुए के संभावित आवास का 70% से अधिक हिस्सा है। लंबे इंतज़ार के बाद जारी हुई यह रिपोर्ट 30 जनवरी 2024 को सामने आई और इसमें पहली बार देश में हिम तेंदुओं की अनुमानित संख्या आधिकारिक रूप से बताई गई - 718।
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक हिम तेंदुए लद्दाख में पाए गए, जहां इनकी संख्या 477 आंकी गई। इसके बाद उत्तराखंड में 124, हिमाचल प्रदेश में 51, अरुणाचल प्रदेश में 36, सिक्किम में 21, और जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 9 की उपस्थिति दर्ज की गई। यह आंकड़ा न केवल हिम तेंदुए की वास्तविक स्थिति दिखाता है, बल्कि यह भी बताता है कि किन क्षेत्रों में इनके संरक्षण की सबसे अधिक ज़रूरत है।
( Image credit : Gaon Connection Network, Gaon Connection )
एसपीएआई को देश का अब तक का सबसे बड़ा, कठिन और वैज्ञानिक रूप से कठोर वन्यजीव आकलन माना जा रहा है। इस सर्वे की खासियत यह है कि इसे दो-चरणीय मॉडल पर तैयार किया गया। पहले चरण में टीमों ने हिम तेंदुए के संभावित आवासों की पहचान की, जबकि दूसरे चरण में कैमरा ट्रैप लगाकर उनकी वास्तविक उपस्थिति का पता लगाया गया। सर्वेक्षण टीमों ने ऊबड़-खाबड़, बर्फीले और बेहद कठिन इलाकों में 13,450 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा की। इसके अलावा 1,971 स्थानों पर कैमरे लगाए गए, जिनसे लगभग 1,80,000 कैमरा-ट्रैप नाइट्स की निगरानी के दौरान 241 अलग-अलग हिम तेंदुओं की तस्वीरें कैप्चर हुईं।
इस विशाल अभ्यास का नेतृत्व देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) ने किया, जिसमें सभी रेंज राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के वन विभागों के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर काम करने वाले कई गैर-सरकारी संगठन भी जुड़े रहे। इसका दूसरा चरण एसपीएआई 2.0 केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने वन्यजीव सप्ताह 2025 में शुरू किया है, जिसका लक्ष्य हिम तेंदुए और उसके आवास की निगरानी को और अधिक नियमित व मजबूत बनाना है।
हिम तेंदुआ भारत सरकार के प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम (Species Recovery Programme) के तहत चिन्हित 24 प्रजातियों में शामिल है। इस कार्यक्रम के ज़रिए केंद्र राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता देता है, ताकि लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण वैज्ञानिक तरीकों से किया जा सके। एसपीएआई के निष्कर्ष मंत्रालय की भविष्य की संरक्षण रणनीतियों की रीढ़ बनेंगे, जिनमें उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जनसंख्या निगरानी, बेहतर वैज्ञानिक आकलन और स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी जैसे पहलुओं पर जोर रहेगा।
केंद्रीय मंत्रालय ने राष्ट्रीय हिम तेंदुआ इकोसिस्टम संरक्षण प्राथमिकताएं (NSLEP) के तहत हिम तेंदुए के संरक्षण को मिशन मोड में आगे बढ़ाया है। इसी दिशा में ‘सिक्योर हिमालय’ कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य हिमालय के नाज़ुक उच्च-ऊंचाई वाले इकोसिस्टम को सुरक्षित रखना, हिम तेंदुए जैसे दुर्लभ वन्यजीवों की सुरक्षा करना और इन क्षेत्रों पर निर्भर समुदायों की आजीविका को मज़बूत करना है।
भारत में हिम तेंदुआ सबसे उच्च सुरक्षा श्रेणी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध है। इसका मतलब है कि इसे कानूनी सुरक्षा का सर्वोच्च दर्जा प्राप्त है। इसके प्राकृतिक आवासों को बचाने के लिए सरकार दीर्घकालिक और विज्ञान-आधारित प्रबंधन रणनीतियों पर काम कर रही है। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश में घोषित शीत रेगिस्तान जीवमंडल अभ्यारण्य को यूनेस्को के वर्ल्ड बायोस्फियर रिजर्व नेटवर्क में शामिल किया गया है। इसी तरह नंदा देवी और कंचनजंगा जैसे संरक्षित क्षेत्र भी हिम तेंदुए के प्रमुख आवासों को सुरक्षित रखते हैं। कुल मिलाकर लगभग 7,770 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को संरक्षित आवास के रूप में मजबूत संरक्षण मिला है।
लंबी अवधि में लक्ष्य न केवल संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार करना है, बल्कि जमीन-स्तर पर समुदायों को शामिल करते हुए आवासों का बेहतर प्रबंधन करना है। वैज्ञानिक निगरानी, बहु-एजेंसी समन्वय, चराई दबाव और आवास क्षरण को कम करना जैसे प्रयास इस मिशन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने यह पूरी जानकारी साझा की। यह आकलन भारत में हिम तेंदुए के संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है, जो आने वाले वर्षों में इस दुर्लभ और सुंदर प्रजाति को बचाने के लिए मार्गदर्शक साबित होगा।