African Swine Fever से वैश्विक बाजार में हलचल, स्पेन-फिलीपींस तनाव के बीच भारत के लिए भी चेतावनी
Gaon Connection | Gaon Connection Network | Dec 09, 2025, 15:13 IST
अफ्रीकन स्वाइन फीवर (ASF) के नए मामले सामने आने के बाद फिलीपींस ने स्पेन से सूअर मांस आयात पर अस्थायी रोक लगा दी है। सरकार ने कहा कि यह कदम घरेलू पशुओं की सुरक्षा के लिए जरूरी है और त्योहारों के दौरान मांस की कमी नहीं होने दी जाएगी। वैश्विक पोर्क बाजार में यह बड़ा झटका है, जबकि भारत में भी ASF का संकट कभी-भी असर दिखा सकता है।
अफ्रीकन स्वाइन फीवर (ASF) के मामले बढ़ने के बाद फिलीपींस सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए स्पेन से सूअर मांस के आयात पर अस्थायी रोक लगा दी है। फिलीपींस के कृषि मंत्री फ्रांसिस्को टियू लॉरेल ने बताया कि यह रोक बीमारी को देश में फैलने से रोकने के लिए लगाई गई है ताकि घरेलू और जंगली दोनों तरह के सूअरों की सुरक्षा की जा सके। उन्होंने भरोसा दिलाया कि इससे क्रिसमस के दौरान सूअर मांस की कमी या दाम बढ़ने जैसी समस्या नहीं होगी, क्योंकि कोल्ड स्टोरेज पहले से ही पर्याप्त स्टॉक से भरे हुए हैं।
स्पेन के पशु चिकित्सा विभाग ने 28 नवंबर को वैश्विक पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) को जानकारी दी कि बार्सिलोना के साबाडेल क्षेत्र में जंगली सूअरों में ASF की पुष्टि हुई है। इसके बाद फिलीपींस ने तुरंत आयात को रोकते हुए स्पेन से आने वाले सभी सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी परमिट रद्द कर दिए। इसमें जीवित सूअर, सूअर मांस, खाल और कृत्रिम निषेचन (Artificial Insemination) के लिए वीर्य भी शामिल हैं। केवल वही फ्रोजन पोर्क उत्पाद फिलीपींस में आने की अनुमति है जो 11 नवंबर तक उत्पादित और 4 दिसंबर या उससे पहले जहाज़ों पर लोड किए गए थे। 11 नवंबर के बाद तैयार हर नया शिपमेंट स्पेन वापस भेज दिया जाएगा।
अफ्रीकन स्वाइन फीवर बेहद घातक बीमारी है जिसमें घरेलू और जंगली दोनों तरह के सूअरों की मृत्यु दर 100% तक पहुंच सकती है। इंसानों में यह बीमारी नहीं फैलती, लेकिन सूअर पालन उद्योग को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाती है। वायरस लंबे समय तक वातावरण में जीवित रह सकता है और कपड़ों, जूतों, वाहनों के पहियों और यहां तक कि प्रसंस्कृत पोर्क उत्पादों, जैसे हैम, सॉसेज और बेकन के माध्यम से भी फैल सकता है। इसलिए नियंत्रण के लिए कड़े प्रतिबंध बेहद ज़रूरी हैं।
भारतीय परिप्रेक्ष्य से यह मामला और महत्वपूर्ण हो जाता है। सिर्फ फिलीपींस या यूरोप ही नहीं, भारत भी पिछले कुछ वर्षों में ASF से बुरी तरह प्रभावित रहा है। 2020–2021 में इस बीमारी ने उत्तर-पूर्व भारत में भारी तबाही मचाई। केवल असम में ही लगभग 4.7 लाख से ज़्यादा सूअरों की मौत और 55 हज़ार से ज़्यादा जानवरों की मजबूरन हत्या करनी पड़ी, जिससे लगभग 200–250 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ। भारत में सूअर पालन गरीब और छोटे किसानों के लिए आय का बड़ा स्रोत है, ख़ासकर असम, नगालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, बिहार और उत्तर प्रदेश में। देश में सूअर पालन से जुड़े परिवारों में से 70% छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनकी आजीविका ASF फैलने पर सीधे खतरे में पड़ जाती है।
दुनिया भर में सूअर का मांस पशु प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। वैश्विक स्तर पर कुल मांस खपत में पोर्क का हिस्सा लगभग 35% है। यही कारण है कि ASF फैलते ही वैश्विक व्यापार, पशुपालकों की आय और खाद्य सुरक्षा तीनों पर गहरा असर पड़ता है। फिलीपींस का हालिया फैसला अन्य देशों के लिए संकेत है कि अगर बीमारी का जोखिम बढ़ा तो कठोर व्यापारिक कदम उठाना सामान्य होता जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को भी ASF के बढ़ते मामलों को देखते हुए निगरानी और जैव-सुरक्षा (Biosecurity) उपायों को और सख्त करना होगा। अगर बीमारी दोबारा बड़े पैमाने पर फैली, तो यह न केवल पशुपालकों के लिए संकट बन सकती है, बल्कि मांस उद्योग, पशुधन व्यापार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भारी प्रभाव डाल सकती है।
अफ्रीकन स्वाइन फीवर के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित सुअरों को मार दिया जाता है, जिसके बाद पशुपालकों को मुआवजा दिया जाता है। भारत में सुअरों को मारने वाले मुआवजे में 50 प्रतिशत केंद्र और 50 प्रतिशत राज्य सरकार देती है। केंद्र सरकार ने सुअरों के लिए अलग-अलग मुआवजा निर्धारित किया है। छोटे सुअर जिनका वजन 15 किलो तक होगा, उनके लिए 2200 रुपए, 15 से 40 किलो वजन के सुअर के लिए 5800 रुपए, 40 से 70 किलो वजन के सुअर के लिए 8400 रुपए और 70 से 100 किलो तक के सुअर को मारने पर 12000 हजार रुपए दिया जाता है।
20वीं पशुगणना के आंकड़े बताते हैं कि ऐसे में जब पूरे देश में सुअरों की संख्या में कमी आयी थी। 19वीं पशुगणना के अनुसार देश में सुअरों की आबादी 103 करोड़ थी, जो 20वीं पशुगणना के दौरान घटकर 91 करोड़ हो गई। पशुगणना के अनुसार, उत्तराखंड में सूकरों की संख्या लगभग 38.785 है।
भारत के साथ ही पिछले कुछ सालों में दूसरे कई देशों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से सुअरों की मौत हुई थी। खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, मंगोलिया, चीन, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, फीलीपिंस, इंडोनेसिया, मलेशिया जैसे दूसरे कई देशों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की वजह से सुअरों की मौत हुई।
क्या है अफ्रीकन स्वाइन बुखार
अफ्रीकन स्वाइन फीवर एक अत्यधिक संक्रामक और खतरनाक पशु रोग है, जो घरेलू और जंगली सुअरों को संक्रमित करता है। इसके संक्रमण से सुअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार से पीड़ित होते हैं। इस बीमारी को पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था। इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है और इस बुखार का अभी तक कोई इलाज नहीं है। इसके संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है। वहीं, जो लोग इस बीमारी से ग्रसित सुअरों के मांस का सेवन करते हैं उनमें तेज बुखार, अवसाद सहित कई गंभीर समस्याएं शुरू हो जाती हैं।
स्पेन के पशु चिकित्सा विभाग ने 28 नवंबर को वैश्विक पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) को जानकारी दी कि बार्सिलोना के साबाडेल क्षेत्र में जंगली सूअरों में ASF की पुष्टि हुई है। इसके बाद फिलीपींस ने तुरंत आयात को रोकते हुए स्पेन से आने वाले सभी सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी परमिट रद्द कर दिए। इसमें जीवित सूअर, सूअर मांस, खाल और कृत्रिम निषेचन (Artificial Insemination) के लिए वीर्य भी शामिल हैं। केवल वही फ्रोजन पोर्क उत्पाद फिलीपींस में आने की अनुमति है जो 11 नवंबर तक उत्पादित और 4 दिसंबर या उससे पहले जहाज़ों पर लोड किए गए थे। 11 नवंबर के बाद तैयार हर नया शिपमेंट स्पेन वापस भेज दिया जाएगा।
अफ्रीकन स्वाइन फीवर बेहद घातक बीमारी है जिसमें घरेलू और जंगली दोनों तरह के सूअरों की मृत्यु दर 100% तक पहुंच सकती है। इंसानों में यह बीमारी नहीं फैलती, लेकिन सूअर पालन उद्योग को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाती है। वायरस लंबे समय तक वातावरण में जीवित रह सकता है और कपड़ों, जूतों, वाहनों के पहियों और यहां तक कि प्रसंस्कृत पोर्क उत्पादों, जैसे हैम, सॉसेज और बेकन के माध्यम से भी फैल सकता है। इसलिए नियंत्रण के लिए कड़े प्रतिबंध बेहद ज़रूरी हैं।
भारतीय परिप्रेक्ष्य से यह मामला और महत्वपूर्ण हो जाता है। सिर्फ फिलीपींस या यूरोप ही नहीं, भारत भी पिछले कुछ वर्षों में ASF से बुरी तरह प्रभावित रहा है। 2020–2021 में इस बीमारी ने उत्तर-पूर्व भारत में भारी तबाही मचाई। केवल असम में ही लगभग 4.7 लाख से ज़्यादा सूअरों की मौत और 55 हज़ार से ज़्यादा जानवरों की मजबूरन हत्या करनी पड़ी, जिससे लगभग 200–250 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ। भारत में सूअर पालन गरीब और छोटे किसानों के लिए आय का बड़ा स्रोत है, ख़ासकर असम, नगालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, बिहार और उत्तर प्रदेश में। देश में सूअर पालन से जुड़े परिवारों में से 70% छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनकी आजीविका ASF फैलने पर सीधे खतरे में पड़ जाती है।
वैश्विक स्तर पर कुल मांस खपत में पोर्क का हिस्सा लगभग 35% है।<br>
दुनिया भर में सूअर का मांस पशु प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। वैश्विक स्तर पर कुल मांस खपत में पोर्क का हिस्सा लगभग 35% है। यही कारण है कि ASF फैलते ही वैश्विक व्यापार, पशुपालकों की आय और खाद्य सुरक्षा तीनों पर गहरा असर पड़ता है। फिलीपींस का हालिया फैसला अन्य देशों के लिए संकेत है कि अगर बीमारी का जोखिम बढ़ा तो कठोर व्यापारिक कदम उठाना सामान्य होता जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को भी ASF के बढ़ते मामलों को देखते हुए निगरानी और जैव-सुरक्षा (Biosecurity) उपायों को और सख्त करना होगा। अगर बीमारी दोबारा बड़े पैमाने पर फैली, तो यह न केवल पशुपालकों के लिए संकट बन सकती है, बल्कि मांस उद्योग, पशुधन व्यापार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भारी प्रभाव डाल सकती है।
अफ्रीकन स्वाइन फीवर के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित सुअरों को मार दिया जाता है, जिसके बाद पशुपालकों को मुआवजा दिया जाता है। भारत में सुअरों को मारने वाले मुआवजे में 50 प्रतिशत केंद्र और 50 प्रतिशत राज्य सरकार देती है। केंद्र सरकार ने सुअरों के लिए अलग-अलग मुआवजा निर्धारित किया है। छोटे सुअर जिनका वजन 15 किलो तक होगा, उनके लिए 2200 रुपए, 15 से 40 किलो वजन के सुअर के लिए 5800 रुपए, 40 से 70 किलो वजन के सुअर के लिए 8400 रुपए और 70 से 100 किलो तक के सुअर को मारने पर 12000 हजार रुपए दिया जाता है।
20वीं पशुगणना के आंकड़े बताते हैं कि ऐसे में जब पूरे देश में सुअरों की संख्या में कमी आयी थी। 19वीं पशुगणना के अनुसार देश में सुअरों की आबादी 103 करोड़ थी, जो 20वीं पशुगणना के दौरान घटकर 91 करोड़ हो गई। पशुगणना के अनुसार, उत्तराखंड में सूकरों की संख्या लगभग 38.785 है।
भारत के साथ ही पिछले कुछ सालों में दूसरे कई देशों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से सुअरों की मौत हुई थी। खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, मंगोलिया, चीन, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, फीलीपिंस, इंडोनेसिया, मलेशिया जैसे दूसरे कई देशों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की वजह से सुअरों की मौत हुई।
क्या है अफ्रीकन स्वाइन बुखार
अफ्रीकन स्वाइन फीवर एक अत्यधिक संक्रामक और खतरनाक पशु रोग है, जो घरेलू और जंगली सुअरों को संक्रमित करता है। इसके संक्रमण से सुअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार से पीड़ित होते हैं। इस बीमारी को पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था। इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है और इस बुखार का अभी तक कोई इलाज नहीं है। इसके संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है। वहीं, जो लोग इस बीमारी से ग्रसित सुअरों के मांस का सेवन करते हैं उनमें तेज बुखार, अवसाद सहित कई गंभीर समस्याएं शुरू हो जाती हैं।