समुद्र से उभरती नई खेती: तटीय किसानों के लिए उम्मीद बनी सीवीड

Divendra Singh | Gaon Connection Network | Dec 10, 2025, 12:50 IST
देश में सीवीड की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की कई योजनाएँ भी चल रहीं हैं, पिछले कुछ बरसों में देश में सीवीड का उत्पादन भी बढ़ गया है।
तमिलनाडु समुद्री शैवाल उत्पादन में अग्रणी राज्य के रूप में उभरा है।
देश में समुद्री शैवाल (सीवीड) की खेती अब सिर्फ़ एक विकल्प नहीं रह गई, यह तटीय किसानों के लिए जल, ज़मीन और आजीविका का एक नया भरोसा बन रही है। सीवीड के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ चल रहीं हैं। ऐसे में जानना ज़रूरी है कि सीवीड है क्या और किसमें इसका इस्तेमाल होता है।

9 दिसंबर को लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह ने बताया है कि इस समय तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप जैसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में समुद्री शैवाल की खेती की जाती है, जो लगभग 24707.11 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है।

भारत में सीवीड के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए गुजरात के भावनगर में स्थित केंद्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (CSMCRI) पिछले कई वर्षों से काम कर रहा है। भारत में लगभग 8,118 किमी समुद्र तटीय क्षेत्र है, जहाँ पर समुद्री शैवाल के उत्पादन की अपार संभावनाएँ हैं।

केंद्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (CSMCRI) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अंकुर गोयल सीवीड के उत्पादन के महत्व को समझाते हैं, "समुद्री शैवाल बहुत तरीके के होते हैं, इनमें से कुछ पर इंडिया में काम होता है और उनमें से कुछ में यहाँ संस्थान में भी काम हो रहा है। सारी की सारी लड़ाई ज़मीन की है, हमारे यहां जनसंख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन ज़मीन तो उतनी ही है। भारत तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है, समुद्र के किनारे रहने वाले ज्यादातर परिवार मछुआरा समुदाय से आते हैं। मछुआरा समुदाय के लिए सीवीड उत्पादन कमाई का ज़रिया बन रहा है।"

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, दुनिया भर में 2016 में लगभग 30.1 मिलियन टन सीवीड का उत्पादन हुआ था। इसमें से 95% उत्पादन खेती के जरिए और 5% उत्पादन प्राकृतिक तरीके से उगे समुद्री शैवाल से मिलता है। चीन, जापान, कोरिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया और वियतनाम जैसे प्रमुख सीवीड उत्पादक देश हैं।

डॉ. अंकुर गोयल शैवाल के उपयोग के बारे में कहते हैं, "कुछ सीवीड ऐसे हैं, जिनसे हमें बहुत से महत्वपूर्ण उत्पाद मिलते हैं, उदाहरण के लिए सीवीड से हमें बायो स्टीमुलेंट मिलता है जिसके उपयोग से फ़सलों में 16 से 40 प्रतिशत तक वृद्धि हो जाती है। आईसीएआर के रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इस पर प्रयोग भी किया है। जिस तरह से ऑर्गेनिक खेती की बढ़ावा दिया जा रहा है, सीवीड से बने प्रोडक्ट ऑर्गेनिक खेती में मददगार बन सकते हैं।"

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (ICAR–CMFRI) और सीएसआईआर-केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (CSMCRI) जैसे अनुसंधान संस्थान उपयुक्त स्थलों की पहचान और मानचित्रण का कार्य कर रहे हैं। रिपोर्ट की गई तारीख तक, विभिन्न तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 24,707 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने वाले 384 संभावित स्थलों की पहचान की गई है।

तमिलनाडु समुद्री शैवाल उत्पादन में अग्रणी राज्य के रूप में उभरा है। पिछले पांच वर्षों में, समुद्री शैवाल की खेती के तहत सक्रिय क्षेत्र का विवरण राज्य-वार प्रदान किया गया है। प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, इसे मत्स्य पालन विभाग के लिए एक फोकस क्षेत्र बना रही है।

भारत में प्राकृतिक रूप से हरे शैवाल की 900, लाल शैवाल की 4,000 और भूरे शैवाल की 1,500 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से 221 तरह की प्रजातियों का प्रयोग उत्पाद बनाने में होता है, जिसमें 145 खाद्य उत्पाद और 110 का फ़ाइकोकोलोइड्स उत्पादन के लिए इस्तेमाल होता है।

"सीवीड के उत्पादन से ग़रीब मछुआरों को मदद मिलेगी, जैसे इसकी माँग बढ़ेगी, वैसे ही इसका दायरा भी बढ़ेगा। गुजरात और तमिलनाडु में इस पर काम हो रहा है, खासकर के तमिलनाडु में सीवीड से 10 से 14 हजार तक की आमदनी होने लगी है। इसका उत्पादन ज्यादातर महिलाएं ही करती हैं, क्योंकि पुरुष मछुआरे समुद्र में मछली पकड़ने चले जाते हैं, महिलाओं को आय का अलग ज़रिया मिल जाता है, "डॉ. अंकुर गोयल ने आगे कहा।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) में अन्य बातों के साथ-साथ तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के संभावित स्थलों में समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है। इस योजना के ज़रिए तटीय क्षेत्रों में आजीविका और पारिवारिक आय बढ़ाने के लिए स्वयं सहायता समूहों/सहकारी समितियों के माध्यम से महिलाओं और युवाओं की समुद्री शैवाल की खेती में भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) में अन्य बातों के साथ-साथ तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के संभावित स्थलों में समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) में अन्य बातों के साथ-साथ तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के संभावित स्थलों में समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है।


तमिलनाडु समुद्री शैवाल उत्पादन में अग्रणी राज्य के रूप में उभरा है। पिछले पांच वर्षों में, समुद्री शैवाल की खेती के तहत सक्रिय क्षेत्र का विवरण राज्य-वार प्रदान किया गया है। प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, इसे मत्स्य पालन विभाग के लिए एक फोकस क्षेत्र बना रही है।

समुद्री शैवाल की खेती के लिए स्वीकृत परियोजनाओं में तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में समुद्री शैवाल की झटपट और मोनोलिन की स्थापना, तमिलनाडु में एक बहुउद्देशीय समुद्री शैवाल पार्क की स्थापना, और दादरा नगर हवेली और दमन और दीव के केंद्र शासित प्रदेश में एक समुद्री शैवाल बीज बैंक का निर्माण शामिल है। पायलट परियोजनाओं को व्यवहार्यता अध्ययन, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के संचालन में अनुसंधान एवं विकास संस्थानों और तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का समर्थन करने के लिए भी लॉन्च किया गया है।

समुद्री शैवाल उत्पादन के लिए मुख्य रूप से कैराफियोफाइकस अल्वरेज़ी (Kappaphycus alvarezii) और ग्रैसिलारिया एडुलिस (Gracilaria edulis) प्रजातियों की खेती की जाती है। वर्तमान रिपोर्टों के अनुसार, लगभग 503 तटीय गाँव समुद्री शैवाल की खेती में लगे हुए हैं, जिनमें विभिन्न स्वयं सहायता समूहों (SHGs), महिला समूहों और व्यक्तिगत किसानों के माध्यम से लगभग 7,698 सदस्य भाग ले रहे हैं। इस भागीदारी ने 2024 में 74,083 टन के राष्ट्रीय समुद्री शैवाल उत्पादन में योगदान दिया।

PMMSY सभी संभावित तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में आजीविका और पारिवारिक आय को बढ़ावा देने के लिए स्वयं सहायता समूहों और सहकारी समितियों के माध्यम से महिलाओं और युवाओं की भागीदारी को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करता है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, और दादरा नगर हवेली और दमन दीव से समुद्री शैवाल की खेती के लिए प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है।

तमिलनाडु में एक बहुउद्देशीय समुद्री शैवाल पार्क को 127.71 करोड़ रुपये की कुल परियोजना लागत के साथ मंजूरी दी गई है। यह पार्क बड़े पैमाने पर समुद्री शैवाल की खेती, प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन का समर्थन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। परियोजना में समुद्री शैवाल बीज गुणन के लिए वालमवूर (रामनाथपुरम जिला) में हब-I सुविधा, प्रसंस्करण और मूल्य वर्धित उत्पाद विकास के लिए मंगाणूर (पुडुकोट्टई जिला) में हब-II सुविधा, और थूथुकुडी, रामनाथपुरम, पुडुकोट्टई और तंजावुर जिलों के समुद्री शैवाल खेती गांवों में स्पोक-स्तरीय बुनियादी ढांचा शामिल है।

तमिलनाडु सरकार ने बताया है कि लगभग 50% नागरिक कार्य पूरे हो चुके हैं, और अब तक 31.28 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। शेष कार्य प्रगति पर हैं, हब-I के जनवरी 2026 तक और हब-II के जुलाई 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है।
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