मीलीबग को पेड़ तक पहुँचने से पहले रोकें; दिसंबर बनेगा उत्पादन बढ़ाने का महीना
Dr SK Singh | Dec 12, 2025, 17:55 IST
मीलीबग आम की फसल को 50–100% तक नुकसान पहुँचा सकता है, लेकिन दिसंबर में किया गया प्रबंधन इस खतरे को पूरी तरह रोक सकता है। सही समय पर कार्रवाई, बेहतर फूल और अधिक उत्पादन का रास्ता बनाती है।
( Image credit : Gaon Connection Network, Gaon Connection )
आम के पेड़ों पर मीलीबग का हमला एक ऐसी चुनौती बन गया है, जिसे किसान समय रहते न रोकें तो यह उनकी सालभर की मेहनत पर पानी फेर सकता है। कृषि वैज्ञानिकों का साफ कहना है कि आम के बागों में इस कीट का नियंत्रण तभी संभव है जब किसान दिसंबर महीने में ही इसकी रोकथाम कर लें। यह वही समय है जब यह कीट अभी मिट्टी में मौजूद होता है और अपने निम्फ यानी ‘क्रॉलर’ अवस्था में धीरे-धीरे पेड़ की ओर बढ़ना शुरू करता है। यदि इसे इसी शुरुआती चरण में रोक लिया जाए, तो पूरा बाग सुरक्षित रह सकता है और आने वाले मंजर का विकास बेहतरीन ढंग से हो सकता है।
पूर्वी भारत, खासकर बिहार के आम उत्पादक किसान पिछले कुछ वर्षों से मीलीबग के बढ़ते प्रकोप से परेशान हैं। जैसे ही पेड़ मंजर निकालना शुरू करता है, कीट की सक्रियता बढ़ जाती है और वह सबसे पहले कोमल कलियों पर हमला करता है। यह फूलों और डंठलों का रस चूस लेता है, जिससे परागण में बाधा आती है, फूल झड़ने लगते हैं और छोटे टिकोलों का गिरना अचानक बढ़ जाता है। कई बार तो पूरा मंजर नष्ट हो जाता है और किसान उस साल की उपज से लगभग पूरी तरह हाथ धो बैठते हैं। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि मंजर आने पर कीटनाशक का उपयोग करने से फूल और मधुमक्खियाँ दोनों प्रभावित होती हैं। ऐसे में दिसंबर का महीना ही वह निर्णायक समय है जब बिना किसी नुकसान के प्रभावी प्रबंधन किया जा सकता है।
दिसंबर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी समय मीलीबग की आबादी जमीन के पास होती है। जैसे ही तापमान में हल्की वृद्धि होती है, ये निम्फ धीरे-धीरे तने पर चढ़ना शुरू करते हैं। यदि किसान इस समय सतर्क नहीं रहे तो एक बार पेड़ पर पहुँचने के बाद इसका नियंत्रण कठिन और महंगा हो जाता है। मिट्टी में मौजूद मादा और अंडों पर यांत्रिक तथा रासायनिक तरीकों से रोक लगाई जा सकती है, लेकिन पेड़ पर पहुंचने के बाद केवल आंशिक नियंत्रण ही संभव हो पाता है।
मीलीबग से होने वाले नुकसान की सबसे बड़ी वजह इसका रस चूसने वाला स्वभाव है। यह पौधे के अंदर मौजूद पोषक तत्वों को खींच लेता है और पीछे छोड़ देता है एक चिपचिपा पदार्थ, जिस पर बाद में कालिख रोग यानी ‘सूटी मोल्ड’ विकसित हो जाता है। यह फफूंदी पत्तियों को काला कर देती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण रुक जाता है और पेड़ कमजोर होने लगता है। दूसरी ओर, मधुमक्खियों की सक्रियता घट जाती है, जिससे परागण बाधित होता है और फल सेटिंग में भारी गिरावट आती है।
इससे बचने का सबसे प्रभावी तरीका यांत्रिक और सांस्कृतिक प्रबंधन है। बाग की साफ-सफाई से शुरुआत करना सबसे पहला कदम होना चाहिए। गिरी पत्तियाँ और खरपतवार हटाने से कीट की छिपने की जगहें कम होती हैं। गर्मी के मौसम में गहरी जुताई भी बेहद उपयोगी है क्योंकि इससे मिट्टी के भीतर छिपी मादा तेज धूप में नष्ट हो जाती है। दिसंबर में पेड़ों के तनों पर पॉलिथीन बैरियर लगाना आज भी सबसे सफल उपायों में गिना जाता है। पॉलिथीन की 30 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी को तने पर कसकर बाँधा जाता है और उस पर ग्रीस या मशीन ऑयल लगाया जाता है। इससे कीट का क्रॉलर ऊपर चढ़ ही नहीं पाता और पूरा बाग सुरक्षित रहता है।
मिट्टी में रासायनिक प्रबंधन भी दिसंबर के अंतिम सप्ताह या जनवरी के पहले सप्ताह में पूरा कर लेना चाहिए। पेड़ के चारों ओर हल्की गुड़ाई करने के बाद क्लोरपाइरीफॉस पाउडर को मिट्टी में मिलाने से निम्फ की आगे की गतिशीलता रुक जाती है और अगले कुछ महीनों तक कीट का दबाव बहुत कम दिखाई देता है। यदि कुछ कीट पेड़ पर चढ़ भी जाएँ, तो शुरुआती अवस्था में डाईमेथोएट का शाम के समय हल्का छिड़काव किया जा सकता है। हालांकि यह तरीका सौ प्रतिशत प्रभावी नहीं होता और मंजर आने के बाद तो इसका उपयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
जैविक नियंत्रण भी उतना ही जरूरी है। बागों में क्रिप्टोलेमस लेडीबर्ड बीटल, पैरासाइटॉइड ततैयों और ग्रीन लेसविंग जैसे प्राकृतिक शत्रु मौजूद होते हैं जो मीलीबग की आबादी को संतुलित रखते हैं। यदि किसान कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग करेंगे तो ये मित्र कीट नष्ट हो जाएंगे और कीट का प्रकोप और बढ़ जाएगा।
आखिर में, दिसंबर का प्रबंधन इसलिए सर्वोपरि माना जाता है क्योंकि यही वह समय है जब किसान आने वाले मंजर को सुरक्षित कर सकते हैं। समय पर उठाए गए कदम न केवल मंजर को स्वस्थ रखते हैं, बल्कि परागण को सुचारू बनाते हैं और टिकोलों के गिरने की समस्या को भी काफी कम कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप आम की उपज में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
कहावत बिल्कुल सही है, दिसंबर में किया गया एक सही कदम, पूरे साल की मेहनत बचा सकता है।
पूर्वी भारत, खासकर बिहार के आम उत्पादक किसान पिछले कुछ वर्षों से मीलीबग के बढ़ते प्रकोप से परेशान हैं। जैसे ही पेड़ मंजर निकालना शुरू करता है, कीट की सक्रियता बढ़ जाती है और वह सबसे पहले कोमल कलियों पर हमला करता है। यह फूलों और डंठलों का रस चूस लेता है, जिससे परागण में बाधा आती है, फूल झड़ने लगते हैं और छोटे टिकोलों का गिरना अचानक बढ़ जाता है। कई बार तो पूरा मंजर नष्ट हो जाता है और किसान उस साल की उपज से लगभग पूरी तरह हाथ धो बैठते हैं। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि मंजर आने पर कीटनाशक का उपयोग करने से फूल और मधुमक्खियाँ दोनों प्रभावित होती हैं। ऐसे में दिसंबर का महीना ही वह निर्णायक समय है जब बिना किसी नुकसान के प्रभावी प्रबंधन किया जा सकता है।
दिसंबर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी समय मीलीबग की आबादी जमीन के पास होती है। जैसे ही तापमान में हल्की वृद्धि होती है, ये निम्फ धीरे-धीरे तने पर चढ़ना शुरू करते हैं। यदि किसान इस समय सतर्क नहीं रहे तो एक बार पेड़ पर पहुँचने के बाद इसका नियंत्रण कठिन और महंगा हो जाता है। मिट्टी में मौजूद मादा और अंडों पर यांत्रिक तथा रासायनिक तरीकों से रोक लगाई जा सकती है, लेकिन पेड़ पर पहुंचने के बाद केवल आंशिक नियंत्रण ही संभव हो पाता है।
( Image credit : Gaon Connection Creatives, Gaon Connection )
मीलीबग से होने वाले नुकसान की सबसे बड़ी वजह इसका रस चूसने वाला स्वभाव है। यह पौधे के अंदर मौजूद पोषक तत्वों को खींच लेता है और पीछे छोड़ देता है एक चिपचिपा पदार्थ, जिस पर बाद में कालिख रोग यानी ‘सूटी मोल्ड’ विकसित हो जाता है। यह फफूंदी पत्तियों को काला कर देती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण रुक जाता है और पेड़ कमजोर होने लगता है। दूसरी ओर, मधुमक्खियों की सक्रियता घट जाती है, जिससे परागण बाधित होता है और फल सेटिंग में भारी गिरावट आती है।
इससे बचने का सबसे प्रभावी तरीका यांत्रिक और सांस्कृतिक प्रबंधन है। बाग की साफ-सफाई से शुरुआत करना सबसे पहला कदम होना चाहिए। गिरी पत्तियाँ और खरपतवार हटाने से कीट की छिपने की जगहें कम होती हैं। गर्मी के मौसम में गहरी जुताई भी बेहद उपयोगी है क्योंकि इससे मिट्टी के भीतर छिपी मादा तेज धूप में नष्ट हो जाती है। दिसंबर में पेड़ों के तनों पर पॉलिथीन बैरियर लगाना आज भी सबसे सफल उपायों में गिना जाता है। पॉलिथीन की 30 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी को तने पर कसकर बाँधा जाता है और उस पर ग्रीस या मशीन ऑयल लगाया जाता है। इससे कीट का क्रॉलर ऊपर चढ़ ही नहीं पाता और पूरा बाग सुरक्षित रहता है।
मिट्टी में रासायनिक प्रबंधन भी दिसंबर के अंतिम सप्ताह या जनवरी के पहले सप्ताह में पूरा कर लेना चाहिए। पेड़ के चारों ओर हल्की गुड़ाई करने के बाद क्लोरपाइरीफॉस पाउडर को मिट्टी में मिलाने से निम्फ की आगे की गतिशीलता रुक जाती है और अगले कुछ महीनों तक कीट का दबाव बहुत कम दिखाई देता है। यदि कुछ कीट पेड़ पर चढ़ भी जाएँ, तो शुरुआती अवस्था में डाईमेथोएट का शाम के समय हल्का छिड़काव किया जा सकता है। हालांकि यह तरीका सौ प्रतिशत प्रभावी नहीं होता और मंजर आने के बाद तो इसका उपयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
जैविक नियंत्रण भी उतना ही जरूरी है। बागों में क्रिप्टोलेमस लेडीबर्ड बीटल, पैरासाइटॉइड ततैयों और ग्रीन लेसविंग जैसे प्राकृतिक शत्रु मौजूद होते हैं जो मीलीबग की आबादी को संतुलित रखते हैं। यदि किसान कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग करेंगे तो ये मित्र कीट नष्ट हो जाएंगे और कीट का प्रकोप और बढ़ जाएगा।
आखिर में, दिसंबर का प्रबंधन इसलिए सर्वोपरि माना जाता है क्योंकि यही वह समय है जब किसान आने वाले मंजर को सुरक्षित कर सकते हैं। समय पर उठाए गए कदम न केवल मंजर को स्वस्थ रखते हैं, बल्कि परागण को सुचारू बनाते हैं और टिकोलों के गिरने की समस्या को भी काफी कम कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप आम की उपज में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
कहावत बिल्कुल सही है, दिसंबर में किया गया एक सही कदम, पूरे साल की मेहनत बचा सकता है।