मौसम बारिश और गिरी फ़सल कीमतें, किसानों की कमाई में रिकॉर्ड गिरावट: रिपोर्ट

Gaon Connection | Dec 12, 2025, 15:28 IST
बेमौसम बारिश, फसलों को हुए बड़े नुकसान और खरीफ कीमतों में भारी गिरावट ने किसानों की आय को बुरी तरह झटका दिया है। एलारा सिक्योरिटीज की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि कई राज्यों में आय महामारी के बाद के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है।
पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े धान उत्पादक राज्यों में धान किसानों की कमाई वित्तीय वर्ष 2026 में करीब 10% तक घट गई।
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देश भर के किसानों की आमदनी इस सीजन में बुरी तरह प्रभावित हुई है। बेमौसम बारिश, लगातार बदलता मौसम, खरीफ फसलों का खराब उत्पादन और बाज़ार में कीमतों का अचानक टूट जाना, इन सबने मिलकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला है। एलारा सिक्योरिटीज की एक ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि गाँवों में खेती से होने वाली आय में “तेजी से गिरावट” दर्ज की जा रही है, और किसान इस समय गंभीर आर्थिक दबाव में हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर में किए गए ग्रामीण सर्वे बताते हैं कि बेमौसम बारिश ने कई जगहों पर धान, दालें, तिलहन और कपास की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया। इसके बाद जब फसल मंडियों में पहुंची, तो कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से काफी नीचे थीं। किसानों को उम्मीद थी कि नुकसान की भरपाई बेहतर दाम से हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े धान उत्पादक राज्यों में धान किसानों की कमाई वित्तीय वर्ष 2026 में करीब 10% तक घट गई। रिपोर्ट में इसे कोविड-19 महामारी के बाद का “सबसे कमजोर आय स्तर” बताया गया है।

कुछ राज्यों में नकद हस्तांतरण, मुफ्त बिजली और बढ़ती ग्रामीण मजदूरी से थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन बड़े पैमाने पर हुई फसल क्षति और “कीमतों में ऐतिहासिक गिरावट” ने ग्रामीण उपभोग और मांग दोनों को नीचे धकेल दिया है। इससे आने वाले महीनों में ग्रामीण बाज़ार की स्थिति और कमजोर होने का खतरा बढ़ गया है।

धान किसानों पर मौसम की मार
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अक्टूबर-नवंबर में खरीफ 2025 की कटाई के दौरान किसानों को कई झटके लगे, अत्यधिक बारिश, कटाई में देरी, मंडियों में एक साथ माल की भारी आवक, दानों की गुणवत्ता में गिरावट और सरकारी खरीद की कम मौजूदगी। नतीजा यह हुआ कि बाज़ार में दाम लगातार नीचे जाते रहे। यह गिरावट सिर्फ मानसून तक सीमित नहीं थी, बल्कि वैश्विक और घरेलू नीतियों ने भी इसे और बढ़ा दिया।

रिपोर्ट में बताया गया है कि कपास, तुअर और उड़द जैसी फसलों के ड्यूटी-फ्री आयात ने घरेलू कीमतों को कम कर दिया। इसके अलावा कच्चे पाम, सोया और सूरजमुखी तेल पर मूल सीमा शुल्क को 20% से घटाकर 10% करने से तिलहन किसानों को सीधा नुकसान हुआ। अमेरिका के साथ संभावित व्यापार समझौते के चलते मक्का और सोयाबीन जैसी फसलों के आयात की संभावनाओं ने भी स्थानीय कीमतों पर दबाव बनाए रखा।

मंडियों के आंकड़े बताते हैं कि नवंबर 2025 तक कई प्रमुख फसलों के दाम MSP से बहुत नीचे थे, काला चना 19% नीचे, कपास 8% नीचे, सोयाबीन 18% नीचे और मक्का लगभग 27% नीचे। यह गिरावट किसानों के लिए बेहद चिंताजनक है, क्योंकि फसलों की लागत लगातार बढ़ रही है, डीज़ल, मजदूरी, खाद, कीटनाशक और सिंचाई सभी महंगे होते जा रहे हैं।

इन आर्थिक चुनौतियों के बीच नीति मोर्चे पर भी हालात उत्साहजनक नहीं हैं। रिपोर्ट बताती है कि इस साल ग्रामीण विकास पर केंद्र सरकार का खर्च कम हुआ है। अप्रैल से अक्टूबर के बीच ग्रामीण विकास बजट का सिर्फ 45% ही उपयोग हो पाया, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 52% था। टैक्स रेवेन्यू में कमी और GDP वृद्धि में सुस्ती के कारण सरकार के पास ग्रामीण क्षेत्रों पर अधिक खर्च करने की गुंजाइश सीमित दिख रही है।

यह स्थिति ऐसे समय में सामने आ रही है जब मौसम वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पैटर्न और असामान्य होगा। हाल ही के शोध बताते हैं कि हिमालयी क्षेत्रों में भारी वर्षा, बाढ़ और रनऑफ में लगातार बढ़ोतरी होगी। इससे आने वाले वर्षों में न सिर्फ खेती प्रभावित होगी बल्कि नदी घाटियों में रहने वाले लाखों लोगों के सामने बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाएगा। इस तरह मौसम–आधारित जोखिम और मौसमी झटके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और कमजोर करते जा रहे हैं।

कुल मिलाकर तस्वीर साफ है: किसानों की आय पर दोहरी मार है, एक तरफ मौसम का अस्थिर स्वभाव और दूसरी तरफ बाज़ार में कीमतों की गिरावट। ऐसी स्थिति में मजबूत MSP नीति, समय पर सरकारी खरीद, आयात नियंत्रण, जलवायु–सुरक्षित कृषि योजनाओं और ग्रामीण खर्च में बढ़ोतरी जैसे कदम जरूरी हो जाते हैं, ताकि किसानों को स्थिर आय और आर्थिक सुरक्षा मिल सके।
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