जंगली सूअरों के कहर से टूटा सब्र: कोयंबटूर के किसान खुद बचाएँगे अपनी फ़सल
Gaon Connection | Gaon Connection Network | Dec 09, 2025, 18:24 IST
लगातार जंगली सूअरों के हमलों से फसल बर्बाद होने और सरकारी कार्रवाई न के बराबर होने से कोयंबटूर के किसान मजबूर हो चुके हैं। अब उन्होंने अपने खेत बचाने के लिए 15 किसानों की विशेष टीम बनाकर खुद ही हालात संभालने का फैसला लिया है।
तमिलनाडु के कोयंबटूर के खेतों में इस समय फसलों के लिए सबसे बड़ा डर सूखे, बारिश या पैसों का नहीं है; बल्कि उन जंगली सूअरों का है जो रात में खेतों में घुसकर महीनों की मेहनत एक ही रात में बर्बाद कर देते हैं। किसानों ने यह दर्द कई बार वन विभाग के दरवाज़े पर जाकर सुनाया, दर्जनों शिकायतें दीं, लेकिन जब सुनवाई नहीं हुई तो मजबूरी में उन्होंने खुद ही अपनी फसल की रक्षा के लिए मोर्चा संभालने का फैसला किया। यहीं से शुरू हुई, किसानों की नाराज़गी और आत्मरक्षा की यह लड़ाई, खेतों की सुरक्षा के लिए किसानों की अपनी टीम बनाने का निर्णय।
कुछ दिन पहले पेरूर के करादिमादाई में हुई एक बैठक में किसानों की आँखों में आक्रोश और थकान साफ दिख रही थी। कोई अपने टूटे बैलेंस की बात कर रहा था, कोई साल भर की मेहनत के चारे को उजड़ते देखने का दर्द बता रहा था, और कुछ किसान तो ऐसे भी थे जिन्होंने लगातार नुकसान के बाद खेती छोड़ने पर विचार तक कर लिया था। इसी मीटिंग में किसानों ने एक प्रस्ताव पास किया, खेतों में घुसकर फसल को तबाह करने वाले जंगली सूअरों को पकड़ने और रोकने के लिए 15 अनुभवी किसानों की एक विशेष टीम बनाई जाएगी। यह फैसला किसी लड़ाई की इच्छा से नहीं आया था, यह फैसला मजबूरी में लिया गया, अपनी मेहनत को बचाने के लिए।
किसानों का दर्द यह है कि 2025 में सरकार ने जंगली सूअरों के लिए रेगुलेटेड कलिंग ऑर्डर ज़रूर जारी किया, लेकिन इसकी सीमाएँ किसानों को सिर्फ़ और ज्यादा असहाय बना देती हैं। आदेश के अनुसार, जंगल से एक किलोमीटर के भीतर सूअरों को मारना पूरी तरह प्रतिबंधित है। एक से तीन किलोमीटर के बीच केवल पकड़ने और छोड़ने की अनुमति है और तीन किलोमीटर से अधिक दूरी पर ही, केवल प्रशिक्षित वन कर्मचारी शिकार कर सकते हैं। लेकिन किसानों का सवाल साफ है, “सूअर तो सीधे हमारे खेतों में आते हैं, हमारे गाँवों में नहीं रहते। फिर हम खेतों में अपनी फसल बचाएँ कैसे?”
तमिलागा विवसायिगल संगम के अध्यक्ष टी. वेणुगोपाल की आवाज़ में गुस्से से ज्यादा बेबसी है। वे कहते हैं, “11 महीने हो गए आदेश को लागू हुए, लेकिन जमीन पर इसका असर न्यूनतम है। सूअर हर हफ्ते फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, किसान कर्ज में डूब रहे हैं, लेकिन फाइलों में सिर्फ कागज़ हिल रहे हैं। किसानों को सिर्फ यह हक चाहिए कि जो जानवर उनके खेतों पर हमला करे, उसे रोक सकें।”
वेणुगोपाल ने यह स्पष्ट किया कि यह टीम हिंसा फैलाने के लिए नहीं बल्कि बचाव के लिए है। “इस दल में ऐसे किसान शामिल होंगे जिन्होंने पहले भी जंगली जानवरों को संभालने का अनुभव हासिल किया है। उनका उद्देश्य केवल खेत को बचाना है, जीवनयापन को सुरक्षित रखना है।”
वन विभाग अपनी ओर से नियमों की बात करता है। कोयंबटूर के डीएफओ एन. जयाराज के अनुसार, किसानों को सूअरों को मारने की अनुमति नहीं है, और केवल विभाग के प्रशिक्षित कर्मचारी ही नियंत्रित शिकार कर सकते हैं। विभाग का दावा है कि अब तक 2 जंगली सूअर मारे गए और 50 से अधिक पकड़े गए हैं। लेकिन ज़मीन पर खड़े किसान कहते हैं कि यह कार्रवाई स्थिति को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि सूअरों का हमला लगातार जारी है और फसल बचाने का संघर्ष हर रात पहले जैसा ही है।
सच यही है कि खेत सिर्फ अनाज पैदा करने की जगह नहीं होते, वे एक किसान की उम्मीद, सम्मान, और उसके परिवार का भविष्य होते हैं। जब सूअर एक रात में पूरा खेत बर्बाद कर देते हैं, तब नुकसान सिर्फ पैसों का नहीं होता… वह किसान के दिल पर आघात होता है, उस मेहनत पर वार होता है जो कंधों से पसीना टपकाकर बोई गई थी।
इसीलिए किसान अब इंतजार नहीं करना चाहते। वे कहते हैं, “जब सरकार सुरक्षा नहीं दे पाती, तो हमें खुद पहरेदार बनना पड़ता है।”
कुछ दिन पहले पेरूर के करादिमादाई में हुई एक बैठक में किसानों की आँखों में आक्रोश और थकान साफ दिख रही थी। कोई अपने टूटे बैलेंस की बात कर रहा था, कोई साल भर की मेहनत के चारे को उजड़ते देखने का दर्द बता रहा था, और कुछ किसान तो ऐसे भी थे जिन्होंने लगातार नुकसान के बाद खेती छोड़ने पर विचार तक कर लिया था। इसी मीटिंग में किसानों ने एक प्रस्ताव पास किया, खेतों में घुसकर फसल को तबाह करने वाले जंगली सूअरों को पकड़ने और रोकने के लिए 15 अनुभवी किसानों की एक विशेष टीम बनाई जाएगी। यह फैसला किसी लड़ाई की इच्छा से नहीं आया था, यह फैसला मजबूरी में लिया गया, अपनी मेहनत को बचाने के लिए।
किसानों का दर्द यह है कि 2025 में सरकार ने जंगली सूअरों के लिए रेगुलेटेड कलिंग ऑर्डर ज़रूर जारी किया, लेकिन इसकी सीमाएँ किसानों को सिर्फ़ और ज्यादा असहाय बना देती हैं। आदेश के अनुसार, जंगल से एक किलोमीटर के भीतर सूअरों को मारना पूरी तरह प्रतिबंधित है। एक से तीन किलोमीटर के बीच केवल पकड़ने और छोड़ने की अनुमति है और तीन किलोमीटर से अधिक दूरी पर ही, केवल प्रशिक्षित वन कर्मचारी शिकार कर सकते हैं। लेकिन किसानों का सवाल साफ है, “सूअर तो सीधे हमारे खेतों में आते हैं, हमारे गाँवों में नहीं रहते। फिर हम खेतों में अपनी फसल बचाएँ कैसे?”
तमिलागा विवसायिगल संगम के अध्यक्ष टी. वेणुगोपाल की आवाज़ में गुस्से से ज्यादा बेबसी है। वे कहते हैं, “11 महीने हो गए आदेश को लागू हुए, लेकिन जमीन पर इसका असर न्यूनतम है। सूअर हर हफ्ते फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, किसान कर्ज में डूब रहे हैं, लेकिन फाइलों में सिर्फ कागज़ हिल रहे हैं। किसानों को सिर्फ यह हक चाहिए कि जो जानवर उनके खेतों पर हमला करे, उसे रोक सकें।”
वेणुगोपाल ने यह स्पष्ट किया कि यह टीम हिंसा फैलाने के लिए नहीं बल्कि बचाव के लिए है। “इस दल में ऐसे किसान शामिल होंगे जिन्होंने पहले भी जंगली जानवरों को संभालने का अनुभव हासिल किया है। उनका उद्देश्य केवल खेत को बचाना है, जीवनयापन को सुरक्षित रखना है।”
वन विभाग अपनी ओर से नियमों की बात करता है। कोयंबटूर के डीएफओ एन. जयाराज के अनुसार, किसानों को सूअरों को मारने की अनुमति नहीं है, और केवल विभाग के प्रशिक्षित कर्मचारी ही नियंत्रित शिकार कर सकते हैं। विभाग का दावा है कि अब तक 2 जंगली सूअर मारे गए और 50 से अधिक पकड़े गए हैं। लेकिन ज़मीन पर खड़े किसान कहते हैं कि यह कार्रवाई स्थिति को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि सूअरों का हमला लगातार जारी है और फसल बचाने का संघर्ष हर रात पहले जैसा ही है।
सच यही है कि खेत सिर्फ अनाज पैदा करने की जगह नहीं होते, वे एक किसान की उम्मीद, सम्मान, और उसके परिवार का भविष्य होते हैं। जब सूअर एक रात में पूरा खेत बर्बाद कर देते हैं, तब नुकसान सिर्फ पैसों का नहीं होता… वह किसान के दिल पर आघात होता है, उस मेहनत पर वार होता है जो कंधों से पसीना टपकाकर बोई गई थी।
इसीलिए किसान अब इंतजार नहीं करना चाहते। वे कहते हैं, “जब सरकार सुरक्षा नहीं दे पाती, तो हमें खुद पहरेदार बनना पड़ता है।”