By Manvendra Singh
किसान भाइयों, हर दिन लाखों किसान खेत में कीटनाशक का छिड़काव करते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि बोतल पर बना छोटा-सा रंग आपकी ज़िंदगी बचा सकता है। इस वीडियो में हम कीटनाशकों के लाल, पीले, नीले और हरे रंगों का असली मतलब समझाएंगे, बताएंगे कि कौन-सा कीटनाशक कितना ज़हरीला होता है और दवा खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही आप जानेंगे कि PPE किट जैसे मास्क, दस्ताने, गॉगल और गमबूट पहनना क्यों बेहद ज़रूरी है, छिड़काव करते समय कौन-सी सावधानियां अपनानी चाहिए और कौन-सी गलतियां बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। यदि गलती से ज़हर शरीर में चला जाए तो क्या प्राथमिक कदम उठाने चाहिए,
किसान भाइयों, हर दिन लाखों किसान खेत में कीटनाशक का छिड़काव करते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि बोतल पर बना छोटा-सा रंग आपकी ज़िंदगी बचा सकता है। इस वीडियो में हम कीटनाशकों के लाल, पीले, नीले और हरे रंगों का असली मतलब समझाएंगे, बताएंगे कि कौन-सा कीटनाशक कितना ज़हरीला होता है और दवा खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही आप जानेंगे कि PPE किट जैसे मास्क, दस्ताने, गॉगल और गमबूट पहनना क्यों बेहद ज़रूरी है, छिड़काव करते समय कौन-सी सावधानियां अपनानी चाहिए और कौन-सी गलतियां बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। यदि गलती से ज़हर शरीर में चला जाए तो क्या प्राथमिक कदम उठाने चाहिए,
By Manvendra Singh
ICMR की नई रिपोर्ट चेतावनी देती है कि भारत में लंबे समय तक कीटनाशकों के संपर्क में रहने वाले किसानों में मानसिक बीमारियों का खतरा लगभग तीन गुना बढ़ जाता है। पश्चिम बंगाल में किए गए अध्ययन में याददाश्त कमजोर होने से लेकर डिप्रेशन और मूवमेंट डिसऑर्डर तक गंभीर प्रभाव सामने आए हैं।
ICMR की नई रिपोर्ट चेतावनी देती है कि भारत में लंबे समय तक कीटनाशकों के संपर्क में रहने वाले किसानों में मानसिक बीमारियों का खतरा लगभग तीन गुना बढ़ जाता है। पश्चिम बंगाल में किए गए अध्ययन में याददाश्त कमजोर होने से लेकर डिप्रेशन और मूवमेंट डिसऑर्डर तक गंभीर प्रभाव सामने आए हैं।
By Manvendra Singh
By Manvendra Singh
By Manvendra Singh
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धान की रोपाई के बाद असली खेती शुरू होती है- जब खरपतवार, पोषण प्रबंधन, पानी की मात्रा और नकली खाद जैसी चुनौतियाँ सामने आती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यदि किसान इस चरण में जागरूक रहें तो उत्पादन भी बढ़ता है और लागत भी घटती है।
धान की रोपाई के बाद असली खेती शुरू होती है- जब खरपतवार, पोषण प्रबंधन, पानी की मात्रा और नकली खाद जैसी चुनौतियाँ सामने आती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यदि किसान इस चरण में जागरूक रहें तो उत्पादन भी बढ़ता है और लागत भी घटती है।
By Manvendra Singh
प्रदूषित खेती और बढ़ती बीमारियों के इस दौर में उत्तर प्रदेश के किसान प्रदीप दीक्षित ने एक अनोखा रास्ता चुना - प्राकृतिक खेती। पिछले 16 सालों से न उन्होंने कोई दवा खाई, न अपने खेतों में कोई रसायन डाला। उनके खेत अब ज़हरमुक्त हैं, मिट्टी फिर से ज़िंदा हो गई है और परिवार पूरी तरह स्वस्थ है। यह कहानी बताती है कि अगर इरादा मजबूत हो, तो मिट्टी और जीवन दोनों को स्वस्थ बनाया जा सकता है- बिना ज़हर, बिना दवाई।
प्रदूषित खेती और बढ़ती बीमारियों के इस दौर में उत्तर प्रदेश के किसान प्रदीप दीक्षित ने एक अनोखा रास्ता चुना - प्राकृतिक खेती। पिछले 16 सालों से न उन्होंने कोई दवा खाई, न अपने खेतों में कोई रसायन डाला। उनके खेत अब ज़हरमुक्त हैं, मिट्टी फिर से ज़िंदा हो गई है और परिवार पूरी तरह स्वस्थ है। यह कहानी बताती है कि अगर इरादा मजबूत हो, तो मिट्टी और जीवन दोनों को स्वस्थ बनाया जा सकता है- बिना ज़हर, बिना दवाई।
By Manvendra Singh
गाँव, जंगल या खेत में गोबर को लुढ़काते दिखने वाले ये साधारण कीट असल में पर्यावरण के नायकों में से हैं। Dung Beetle, जिन्हें गुबरैला भी कहा जाता है, न सिर्फ मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं बल्कि ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में भी मदद करते हैं। भारत में इनकी सैकड़ों प्रजातियाँ हैं, लेकिन शहरीकरण, रसायनों के बढ़ते उपयोग और जलवायु परिवर्तन के कारण इनकी संख्या घटती जा रही है।
गाँव, जंगल या खेत में गोबर को लुढ़काते दिखने वाले ये साधारण कीट असल में पर्यावरण के नायकों में से हैं। Dung Beetle, जिन्हें गुबरैला भी कहा जाता है, न सिर्फ मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं बल्कि ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में भी मदद करते हैं। भारत में इनकी सैकड़ों प्रजातियाँ हैं, लेकिन शहरीकरण, रसायनों के बढ़ते उपयोग और जलवायु परिवर्तन के कारण इनकी संख्या घटती जा रही है।
By Manvendra Singh
अपने शरीर के संकेतों को समझिए, साल में एक बार रूटीन जाँच कराइए, और डॉक्टर से मिलने में संकोच मत कीजिए।
अपने शरीर के संकेतों को समझिए, साल में एक बार रूटीन जाँच कराइए, और डॉक्टर से मिलने में संकोच मत कीजिए।
By Manvendra Singh
कल को दूसरों के घरों में काम करने वाली ये महिलाएं आज आत्मनिर्भर हैं, ये खुद का व्यवसाय करती हैं, अब इन्हें डाँट नहीं सुननी पड़ती, इनकी कोशिश है कि इनके आसपास की हर एक महिला को चार पैसे के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े।
कल को दूसरों के घरों में काम करने वाली ये महिलाएं आज आत्मनिर्भर हैं, ये खुद का व्यवसाय करती हैं, अब इन्हें डाँट नहीं सुननी पड़ती, इनकी कोशिश है कि इनके आसपास की हर एक महिला को चार पैसे के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े।