जलवायु परिवर्तन का असर: पान किसानों के लिए खेती अब गुज़रे ज़माने की बात?
जलवायु परिवर्तन का असर: पान किसानों के लिए खेती अब गुज़रे ज़माने की बात?

By Divendra Singh

बदलते मौसम और बढ़ती गर्मी के बीच पान किसानों को डर है कि अगली पीढ़ी कहीं परंपरा ही न छोड़ दे। कभी गाँव के बाहर बरेजों में लहलहाती पान की बेलें अब गिनी-चुनी रह गई हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादन घट रहा है, लागत बढ़ रही है और किसानों का हौसला टूट रहा है।

बदलते मौसम और बढ़ती गर्मी के बीच पान किसानों को डर है कि अगली पीढ़ी कहीं परंपरा ही न छोड़ दे। कभी गाँव के बाहर बरेजों में लहलहाती पान की बेलें अब गिनी-चुनी रह गई हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादन घट रहा है, लागत बढ़ रही है और किसानों का हौसला टूट रहा है।

वाराणसी के निषादराज घाट से उठती चैती और ठुमरी की गूँज
वाराणसी के निषादराज घाट से उठती चैती और ठुमरी की गूँज

By Divendra Singh

वाराणसी के 84 घाटों पर हर रोज़ हज़ारों कहानियाँ बिखरी रहती हैं, लेकिन निषादराज घाट पर एक अनोखी धुन बहती है—भूमि निषाद की गाई ठुमरी और चैती। 64 साल के भूमि निषाद बरसों से गंगा में नाव चलाने के साथ-साथ सुरों की गंगा भी बहा रहे हैं। गुरु से नहीं, बल्कि गंगा मैया से सीखा उनका संगीत पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।

वाराणसी के 84 घाटों पर हर रोज़ हज़ारों कहानियाँ बिखरी रहती हैं, लेकिन निषादराज घाट पर एक अनोखी धुन बहती है—भूमि निषाद की गाई ठुमरी और चैती। 64 साल के भूमि निषाद बरसों से गंगा में नाव चलाने के साथ-साथ सुरों की गंगा भी बहा रहे हैं। गुरु से नहीं, बल्कि गंगा मैया से सीखा उनका संगीत पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।

मुर्गियों को मिली लक्ष्मण रेखा: ओडिशा के आदिवासी गाँवों में अनोखा प्रयोग
मुर्गियों को मिली लक्ष्मण रेखा: ओडिशा के आदिवासी गाँवों में अनोखा प्रयोग

By Divendra Singh

इस गाँव में आने से पहले आपको परमिशन लेनी होगी, यही नहीं गाँव में घुसने से पहले आपको सैनिटाइज किया जाएगा; क्योंकि ये गाँव कोई आम गाँव नहीं बायो-सिक्योर गाँव हैं, जो मुर्गियों को बीमारियों से बचाने के लिए बनाया गया है।

इस गाँव में आने से पहले आपको परमिशन लेनी होगी, यही नहीं गाँव में घुसने से पहले आपको सैनिटाइज किया जाएगा; क्योंकि ये गाँव कोई आम गाँव नहीं बायो-सिक्योर गाँव हैं, जो मुर्गियों को बीमारियों से बचाने के लिए बनाया गया है।

‘आदिवासियों को देश-दुनिया से जोड़ने और उन्हें नई पहचान दिलाने का कार्यक्रम है संवाद’
‘आदिवासियों को देश-दुनिया से जोड़ने और उन्हें नई पहचान दिलाने का कार्यक्रम है संवाद’

By Divendra Singh

भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनजातीय आबादी रहती है, और पिछले एक दशक में हमारी जनजातियों की अनोखी संस्कृति और जीवनशैली को एक नया मंच मिला है — संवाद कॉन्क्लेव। इस सफर में अब तक 25 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों की 200 से ज्यादा जनजातियां और 40,000 से ज्यादा लोग जुड़ चुके हैं। लेकिन आखिर इतने लोग पूरे देश यहां क्यों आते हैं? उन्हें यहाँ आकर क्या मिलता है? और संवाद का मंच उनके लिए क्या मायने रखता है? इन सभी सवालों के जवाब दे रहे हैं टाटा स्टील फाउंडेशन के CEO सौरव रॉय

भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनजातीय आबादी रहती है, और पिछले एक दशक में हमारी जनजातियों की अनोखी संस्कृति और जीवनशैली को एक नया मंच मिला है — संवाद कॉन्क्लेव। इस सफर में अब तक 25 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों की 200 से ज्यादा जनजातियां और 40,000 से ज्यादा लोग जुड़ चुके हैं। लेकिन आखिर इतने लोग पूरे देश यहां क्यों आते हैं? उन्हें यहाँ आकर क्या मिलता है? और संवाद का मंच उनके लिए क्या मायने रखता है? इन सभी सवालों के जवाब दे रहे हैं टाटा स्टील फाउंडेशन के CEO सौरव रॉय

रीसाइक्लिंग के बारे में सुना है? हमारे गाँवों में तो बरसों से यही होता आ रहा है
रीसाइक्लिंग के बारे में सुना है? हमारे गाँवों में तो बरसों से यही होता आ रहा है

By Divendra Singh

भारत के गाँवों में लोग भले ही रीसाइक्लिंग शब्द से परिचित न हों, लेकिन करना बखूबी जानते हैं। नानी-दादी अपनी आने वाली पीढ़ियों को सिखा जाती हैं।

भारत के गाँवों में लोग भले ही रीसाइक्लिंग शब्द से परिचित न हों, लेकिन करना बखूबी जानते हैं। नानी-दादी अपनी आने वाली पीढ़ियों को सिखा जाती हैं।

महुआ का पकवान: आदिवासी संस्कृति की सौंधी खुशबू और मिठास
महुआ का पकवान: आदिवासी संस्कृति की सौंधी खुशबू और मिठास

By Divendra Singh

महुए की खुशबू से महकते जंगलों में बसंत के साथ एक अनोखा स्वाद जुड़ता है। तेलंगाना के आदिलाबाद जिले की रेणुका बाई और छिन्नू बाई महुआ, तिल और गुड़ से एक खास पकवान बनाती हैं, जो आदिवासी जीवन और परंपरा का प्रतीक है।

महुए की खुशबू से महकते जंगलों में बसंत के साथ एक अनोखा स्वाद जुड़ता है। तेलंगाना के आदिलाबाद जिले की रेणुका बाई और छिन्नू बाई महुआ, तिल और गुड़ से एक खास पकवान बनाती हैं, जो आदिवासी जीवन और परंपरा का प्रतीक है।

मध्य प्रदेश में बर्ड फ्लू से बिल्लियों की मौत; क्या इंसानों को भी कर सकता है संक्रमित?
मध्य प्रदेश में बर्ड फ्लू से बिल्लियों की मौत; क्या इंसानों को भी कर सकता है संक्रमित?

By Divendra Singh

मध्य प्रदेश में बर्ड फ्लू यानि एवियन इन्फ्लूएंजा से बिल्लियों की मौत से लोगों के मन में सवाल है कि क्या इनसे इंसानों को भी संक्रमण हो सकता है, ये कितनी खतरनाक बीमारी होती है?

मध्य प्रदेश में बर्ड फ्लू यानि एवियन इन्फ्लूएंजा से बिल्लियों की मौत से लोगों के मन में सवाल है कि क्या इनसे इंसानों को भी संक्रमण हो सकता है, ये कितनी खतरनाक बीमारी होती है?

लद्दाख के दूर पहाड़ी गाँव से दुनिया भर में पहुँचा रहे लोकगीतों की धुन
लद्दाख के दूर पहाड़ी गाँव से दुनिया भर में पहुँचा रहे लोकगीतों की धुन

By Divendra Singh

पारंपरिक लोक गीत आज लोगों को दीवाना बना रहे हैं, इनकी कोशिश यही है कि अपने लोकगीतों की इस धुन को लद्दाख के पहाड़ों से लेकर दुनिया के हर एक कोने तक पहुँचाएँ।

पारंपरिक लोक गीत आज लोगों को दीवाना बना रहे हैं, इनकी कोशिश यही है कि अपने लोकगीतों की इस धुन को लद्दाख के पहाड़ों से लेकर दुनिया के हर एक कोने तक पहुँचाएँ।

उरांव कला के ज़रिए अपनी लोक संस्कृति को दुनिया तक पहुँचा रहीं आदिवासी बहनें
उरांव कला के ज़रिए अपनी लोक संस्कृति को दुनिया तक पहुँचा रहीं आदिवासी बहनें

By Divendra Singh

उरांव पेंटिंग के ज़रिए दो आदिवासी बहनें अपनी लोक संस्कृति को दुनिया तक पहुँचाने का प्रयास कर रहीं हैं, इनकी बनाई पेंटिंग की ये खास बात होती है कि इनमें पूरी तरह से प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल होता है।

उरांव पेंटिंग के ज़रिए दो आदिवासी बहनें अपनी लोक संस्कृति को दुनिया तक पहुँचाने का प्रयास कर रहीं हैं, इनकी बनाई पेंटिंग की ये खास बात होती है कि इनमें पूरी तरह से प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल होता है।

एक-दो दिन नहीं, बरसों की मेहनत ने इन्हें इस मुकाम तक पहुँचाया, इंटरनेट पर छा गए हैं ये बच्चे
एक-दो दिन नहीं, बरसों की मेहनत ने इन्हें इस मुकाम तक पहुँचाया, इंटरनेट पर छा गए हैं ये बच्चे

By Divendra Singh

पिछले कुछ दिनों से बच्चों के कुछ वीडियो इंटरनेट पर छा गए हैं, लाल रंग के कपड़ों में सजे-संवरे बच्चे किसी सुपर मॉडल से कम नहीं नज़र आ रहे हैं, लेकिन शायद आपको यकीन न हो, ये सारे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे हैं और इन्होंने ये कपड़े भी खुद से तैयार किए हैं।

पिछले कुछ दिनों से बच्चों के कुछ वीडियो इंटरनेट पर छा गए हैं, लाल रंग के कपड़ों में सजे-संवरे बच्चे किसी सुपर मॉडल से कम नहीं नज़र आ रहे हैं, लेकिन शायद आपको यकीन न हो, ये सारे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे हैं और इन्होंने ये कपड़े भी खुद से तैयार किए हैं।

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