Dec 10, 2025
तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और लक्षद्वीपआज लगभग 24,707 हेक्टेयर में होती है सीवीड की खेती।और उत्पादन… हर साल तेजी से बढ़ रहा है।
Credit: Gaon Connection Network
“हमारी सारी लड़ाई ज़मीन की है।जनसंख्या बढ़ती जा रही है,लेकिन ज़मीन उतनी ही है।समुद्र हमारे लिए नया रास्ता है।” डॉ. अंकुर गोयल, CSMCRI
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मछुआरा परिवारों के लिएसीवीड बन रहा नया सहारा।पुरुष समुद्र में जाते हैं और महिलाएँ…सीवीड की खेती कर रही हैं कमाई – 10 से 14 हज़ार रुपये महीना।
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भारत में प्राकृतिक रूप से मिलती हैं900 हरे शैवाल4,000 लाल शैवाल1,500 भूरे शैवालइनमें से 221 प्रजातियों से बनते हैं कई महत्त्वपूर्ण उत्पाद।
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सीवीड से मिलता हैबायो-स्टीमुलेंट (फसलें 16–40% तक बढ़ती हैं)ऑर्गेनिक खेती के इनपुटफ़ूड प्रोडक्टफ़ाइकोकोलॉयड्सदवाइयों, कॉस्मेटिक्स, पैकेजिंग तक!
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ICAR–CMFRI और CSMCRI मिलकर384 संभावित स्थलों की पहचान कर चुके हैं।सीवीड अब सिर्फ खेती नहीं…एक पूरा उद्योग बन रहा है।
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प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY)सीवीड को बना रही हैसमुद्री राज्यों का प्रमुख फोकस।महिलाओं – युवाओं के लिएनए मौके, नई ट्रेनिंग, नई आय।
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आज 503 तटीय गांवसीवीड खेती से जुड़े हैं।7,698 महिलाएं और किसानइससे कमा रहे हैं अपनी रोज़ी-रोटी।2024 में उत्पादन — 74,083 टन।
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सीवीड की खेती हैकम लागत वालीपर्यावरण के अनुकूलमहिलाओं के लिए बड़ी कमाईभविष्य के जैव-उद्योग की रीढ़
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एक समय था जब सीवीड को, सिर्फ "समुद्री कचरा" समझा जाता था… आज वही तटीय परिवारों की नई आजीविका, नई उम्मीद बन रहा है।